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आइये जानते है: दावतो-तबलीग करना फर्ज़ है, या वाजिब, या सुन्नत ? इसका सबूत कुरानो-हदीस में कहाँ से है?

दावतो-तबलीग करना फर्ज़े-किफाया है, यानी पूरी उम्मत में से कुछ लोग, बराबर लगातार ‘अम्र बिल-मारूफ और नही अनिल-मुन्कर’ यानी लोगों को अच्छे कामों का हुक्म और बुरे कामों से रोकते रहें) यह फर्ज़ है !

क़ुरान से दावतो-तबलीग का सुबूत:

क़ुरान:

(1)तुम बेहतरीन उम्मत हो जो लोगों के फायदे के लि‍ए पैदा की गई है इसलिए कि तुम नेक कामों का हुक्म करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। (सूरह आले-इमरान: 110)
(2) तुम में से एक जमात ऐसी होनी चाहिए जो भलाई की तरफ बुलाए, नेक कामों का हुक्म करे, बुरे कामों से रोके। (सूरह आले-इमरान: 104)
(3) एक जमात ऐसी होनी चाहिए कि जो खूब दीन सीखे और फिर दूसरे लोगों को सिखाए।
(4) उससे ज़्यादा अच्छी बात वाला कौन है जो अल्लाह की तरफ बुलाए, नेक काम करे। (सूरह हामीम-सजदा 33)
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(5) अपने रब के रास्ते की तरफ लोगों को हिक्मत और बेहतरीन नसीहत के साथ बुलाइये और उनसे बेहतरीन तरीके से बातचीत कीजिए। (सूरह_नहल: 125)
(6) ऐ नबी! हमने आपको गवाह और लोगों को खुशखबरी देने वाला, डराने वाला और और लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाने वाला बनाकर भेजा है। (सूरह-अहजाब)
(7) ऐ नबी! आप कह दीजिए कि मेरा (अल्लाह का) रास्ता यही है, और मैं और मेरी पैरवी करने वाले लोग तुमको इसी रास्ते की तरफ बुला रहे हैं।

हदीस से सुबूत:

(1)हज्जतुल-विदा के मौक़े पर लाखों सहाबा की मौजूदगी में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: लोगों! गवाह रहो, मैने अल्लाह के अहकाम और दीन को तुम तक पहुँचा दिया, अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि अपने बाद में आने वाले लोगों तक इस दीन को पहुँचाओ।
(2) दीन की दावत देने के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ताइफ का सफर किया जहां कुछ ज़ालिमों ने आप पर पत्थरों की बारिश करके आपको लहूलुहान कर दिया, यह ऐसी घटना है जिसे इतिहास कभी नहीं भुला सकता, आप ताइफ गए तो सिर्फ दावत इलल्लाह के लिए !
(3) हज़रत खालिद बिन वलीद कहते हैं कि जब मैं इस्लाम में दाखिल नहीं हुआ था तो मुझको दीन की दावत देने के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कभी कभी मेरे घर एक रात दिन में साठ या सत्तर बार तशरीफ लाते कि ए खालिद! ईमान ले आओ सलामती में रहोगे।
(4) जो आदमी किसी को अल्लाह की तरफ बुलाए और दीन की दावत दे तो उसको उसी के बराबर सवाब मिलेगा जिसने उसके कहने पर अच्छा अमल किया। (मुस्लिम)
(5) अल्लाह की क़सम, अगर अल्लाह ने तुम्हारे ज़रिए एक आदमी को भी हिदायत दे दी तो यह तुम्हारे लिए सौ ऊँटों के मिल जाने से बेहतर है। (बुखारी व मुस्लिम)
(6) नेकी का शैक दिलाने वाला, सवाब में, नेकी करने वाले की तरह है।

फायदा:

फिलहाल जो तरीक़ा दावतो-तबलीग का चल रहा है, इसे लगभग नब्बे साल हो गए, और हैरानी व ताज्जुब की बात तो यह है कि पहले ही दिन से लेकर आज तक मीडिया वगैरह के ज़रिए तबलीगी-जमात का कोई एऐलान, कोई तशहीर नहीं कराई गई, कोई अखबार नहीं निकला, कोई माहाना रिसाला जारी नहीं हुआ, कोई आफिस वगैरह नहीं बनाया गया, कोई मिम्बर-साज़ी नहीं की गई, कोई चंदा नहीं किया गया, कोई झंडा नहीं बनाया गया, शौहरत के सभी दरवाज़े शुरू दिन से ही बंद कर दिए गए, लेकिन इसके बावजूद दुनिया का कोई इलाका ऐसा नहीं है जहां पर यह काम नहीं हो रहा है, और मैं तो यह समझता हूँ कि यह सब आप अलैहिस्सलाम की भविष्यवाणी पूरी होने का एक ज़रिया है, इसलिए कि एक मौक़े पर आपने इरशाद फरमाया था: कि एक समय ऐसा आएगा कि दुनिया का कोई कच्चा या पक्का घर ऐसा नहीं होगा जिसमें यह दीन दाखिल न हो, यानी हर कच्चे पक्के मकान में इस्लाम पहुंच जाएगा, और दावतो-तबलीग वालों का भी यही काम है कि वह लोगों को घर-घर जाकर इस्लाम और ईमान की दावत देते हैं।
खैर… जो लोग दावतो-तबलीग पर ऐतराज़ करते हैं या इसे बुरा और खिलाफे-सुन्नत व शरीयत मानते हैं मेरा उनसे एक सवाल है कि अगर आपकी नज़र में इस तरीक़े के अलावा कोई ऐसा तरीक़ा है जिससे हर घर में दावत (दीन) पहुंच जाए तो हमें भी बतलादें ताकि हम भी उस पर अमल कर सकें, और दूसरी बात यह कि जब तक किसी काम के बारे में जानकारी और तजुरबा न हो तो उसके बारे में बे-फायदा और बेकार होने का फैसला करना सही नहीं है, इसलिए ऐतराज़ करने वाले भाईयों से मेरी गुज़ारिश है कि वे पहले कुछ समय इस काम में लगाएं, इसके आदाब जानें और इसकी शर्तों को ध्यान में रखते हुए इस काम में समय लगाएं और फिर अपना फैसला सुनाएं, मुझे पूरी उम्मीद है कि इन-शाअल्लाह उनके सभी शक दूर हो जाएंगे और इस काम के फायदे उनके सामने आ जाएंगे।