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आपकी (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) ज़िन्दगी का एक बेहतरीन वाक्या, जरूर पढ़ें

हिजरत के कर्इ साल बाद आप (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) मदीने से मक्का आए थे। एक वह दौर था जब मक्का के लोग आपकी (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) जान के प्यासे हो गए। तब भी आपने (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) युद्घ का मार्ग नहीं अपनाया। आपके चाचा अबू तालिब गुजर चुके थे, आपकी बीवी खदीजा का भी स्वर्गवास हो चुका था। मां आैर बाप ताे बहुत पहले गुजर चुके थे। आप बिल्कुल अकेले पड़ चुके थे तब मक्का के कुरैश आपसे बदला लेने काे तैयार हुए। वे हर कीमत पर आपकी जान लेने को आमादा थे।

एेसे में आपको (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) को अपने रब की आेर से हुक्म हुआ आैर आप मक्का छोड़कर शांतिपूर्वक मदीना चले गए। मदीना के लोगों ने आपका दिल खोलकर स्वागत किया मगर मक्का के कुरैश यह भी नहीं चाहते थे। उनकी मंशा थी कि आपको खत्म कर दिया जाए। वे फौज लेकर मदीना की आेर चल पड़े तब अपने साथियों, उनके बीवी-बच्चों आैर आत्मरक्षा के लिए आपने (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) रणभूमि की आेर प्रस्थान किया तथा विजयी हुए।

मक्का के लोगों ने आपके साथ जितना दुष्टता का बर्ताव किया था मदीना के लोग उतने ही हमदर्द थे। उन्होंने हर कदम पर आपका साथ दिया आैर कोर्इ भी संकट वे सबसे पहले खुद पर लेना चाहते थे लेकिन आपको (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) खुद से ज्यादा अपने साथियों की फिक्र रहती। आप (सल्ल.) को मक्का की धरती से भी बहुत प्रेम था। यही वो जगह थी जहां आपकी प्यारी मां आमिना, पिता अब्दुल्लाह के कदम पड़े थे। इसी धरती पर काबा था जहां इबादत करना आपका सबसे बड़ा ख्वाब था।

आैर अपनी मातृभूमि किसे अच्छी नहीं लगती? मदीने में  आपको वैसी तकलीफ नहीं थी जैसी मक्का के लोगों ने दी थी। फिर भी उनका मन हमेशा वहां जाने के लिए उत्सुक रहता था। देशप्रेम क्या होता है? मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर देश में महान देशप्रेमी हुए हैं, अमर बलिदानी पैदा हुए हैं।आप भी पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम)  उसी श्रेणी का एक महान देशप्रेमी थे जिन्होंने अपने वतन के लिए कर्इ कुर्बानियां दीं। आपके  कर्इ साथी जंग में शहीद हुए।

मक्का आपका घर था आैर वहां जाने का आपको पूरा हक था लेकिन कुरैश नहीं चाहते थे कि आप पूरी जिंदगी में कभी वहां लौटकर आएं। आपके (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) के पास संसाधन नहीं थे, बहुत बड़ी सेना नहीं थी, लेकिन आप सिर्फ दो बातों के दम पर मैदान में डटे रहे। न सिर्फ डटे रहे बल्कि दुश्मनों को शिकस्त भी दी। इनमें पहली बात थी – ईश्वर और उसकी न्यायप्रियता पर अटूट भरोसा, और दूसरी – सच्चाई। जब आप अपने बहादुर साथियों के साथ वापस मक्का आए तो उन लोगों में भारी भय था जिन्होंने आपको तकलीफें दी थीं। मक्का बिल्कुल सामने था और आप आगे बढ़ते जा रहे थे। उधर मक्का के लोगों के मन में कई आशंकाएं थीं।

तब आपने (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम)  एक व्यक्ति अबू सुफियान से कहा – अपनी कौम में जाओ और उनसे कहो – मुहम्मद मक्का में एक अच्छे भाई की तरह दाखिल होगा। आज न कोई विजयी है और न पराजित। आज तो प्रेम और एकता का दिन है। आज चैन और सुकून का दिन है। अबू सुफियान के घर में जो दाखिल हो जाए, उसे अमान (शरण) है। जो घर का दरवाजा बंद कर ले उसको अमान है और जो काबा में दाखिल हो जाए, उसको भी अमान है। अबू सुफियान ने यह बात मक्का में जाकर कही तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। आप (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) मक्का में दाखिल हुए। फिर आपने काबा जाने का इरादा किया। काबा की चाबी मंगाई और आप काबा गए।

काबा के बाहर मक्कावालों की भीड़ लगी थी। वे लोग आज अपनी किस्मत का फैसला सुनने खड़े थे। तब आपने कुरैश के लोगों की ओर नजर उठाई और पूछा, कुरैश के लोगो, जानते हो मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाला हूं? सब बोले- अच्छा व्यवहार। आप अच्छे भाई हैं और अच्छे भाई के बेटे हैं। फिर आपने फरमाया – आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं। जाओ, तुम सब आजाद हो। आपने (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम)  उन लोगों को आजाद कर दिया जिन्होंने कभी उन्हें बहुत तकलीफें दी थीं। आज आप शक्ति के शिखर पर थे, लेकिन उन लोगों को भी माफ कर दिया जो आपको दुनिया से मिटाना चाहते थे। युद्घ जीतकर दिल जीतने तथा शक्ति के साथ माफी के एेसे उदाहरण इतिहास में बहुत कम मिलते हैं।

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