यूनिवर्सिटी में चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी है! पिछले कई सालों की तरह घिसे पिटे मुद्दे लेकर नए उम्मीदवार मेरे पास आ रहे हैं और में इस सोच में हूँ कि अगली यूनियन कैसी हो..? क्या उन्ही मुद्दों पर हम चुनाव लड़ायें या इस बार के मुद्दे कुछ नए होंगे? एक अच्छी और सलाहियतमंद यूनियन का चुनाव हम सब की ज़िम्मेदारी है!
मेरी ये कश्मकश पिछले कई दिन से जारी है! उम्मीदवारों को देख और परख रहा हूँ! अलग अलग कुर्सी पर दावेदारी करने वाले अपने-अपने मुद्दे सामने रख रहे हैं! लेकिन कई बार की तरह इस बार भी में यही सोच रहा हूँ कि यूनियन का म्यार क्या सिर्फ डाइनिंग की दाल चावल पर ही बात करना होगा या माइनॉरिटी करैक्टर के नाम सियासत करना होगा या इस बार एक नए और अच्छे मुद्दे के साथ हम यूनियन का चुनाव करेंगे!
हमें ये बिलकुल ज़हन में रखना होगा कि अगर यूनियन के ओहदेदारान का चुनाव करें तो अच्छे डिबेटर और सलाहियत रखने वाले का ही करें, लेकिन यहाँ पर सवाल ये खड़ा हुआ कि दावेदारी पेश करने वाले कितने अच्छे डिबेटर हैं..? आखिर को हमें चुनाव उन्ही के बीच में से करना है! आखिर ऐसा क्या हुआ जो अच्छे स्पीकर और डिबेटर की यूनिवर्सिटी में कमी पड़ गयी! अलीगढ़ का नाम हमेशा तारीख के पन्नों में मुल्क को बेहतरीन सियासतदान और स्पीकर देने में रहा है! लेकिन आज जब यूनियन की छत पर बोलने वाले बच्चे का म्यार देखता हूँ तो सिवाए शर्म के मुझे कुछ नहीं सूझता! सर सय्यद के उन ख़्वाबों को चकनाचूर होते हुए महसूस करता हूँ! क्या हम इसका हल निकाल सकते हैं?
इस बार के चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों से मिला और सबसे अपनी मांग ”सिड्डंस यूनियन और डिबेटिंग क्लब” को खुलवाने के लिए मांग की, जिस आवाज़ को में पिछले एक साल से अख़बारों और ब्लॉग के ज़रिये उठा रहा हूँ! सिड्डंस यूनियन और डिबेटिंग क्लब स्टूडेंट यूनियन का एक हिस्सा है, साथ में एक रीडिंग रूम और एक लाइब्रेरी भी है, जिसे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की तर्ज़ पर बनाया गया था! इस क्लब को 1884 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज में शुरू किया गया था! क्लब का नाम हेनरी जॉर्ज इम्पेय सिड्डंस के नाम पर रखा गया जो की क्लब के पहले सदर भी थे! क्लब में महीने में दो बार डिबेट शुरू होती थी जिसे हिंदुस्तानी और अंग्रेजी ज़ुबान में कराया जाता था! इस रिवायत को शुरू करने का सर सय्यद अहमद खान का मकसद क़ौम के बच्चों में डिबेट की सलाहियत पैदा करना, मुल्क की पालिसी पर चर्चा करना और क़ौम के मुख़्तलिफ़ मसाइल पर बात करना था!
आज चुनाव के हालात में हमने अपनी डिमांड उम्मीदवारों के सामने रखी जिसमे प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट जनाब मौहम्मद अबुल फराह उर्फ़ शाज़ली, जो अंग्रेजी डिपार्टमेंट के रिसर्च स्कॉलर है, शाज़ली ने हमारी डिमांड को ये कह कर माना कि अगर स्टूडेंट यूनियन का सदर बनने का शरफ़ मुझे हासिल होता है तो मेरा सबसे पहला काम सिड्डंस क्लब को शुरू करना होगा! इस क्लब के शुरू होने से यूनिवर्सिटी के बच्चों में डिबेट की सलाहियत पैदा होगी और आने वाले चुनाव में बेहतरीन डिबेटर और सलाहियतमंद उम्मीदवार आगे आएंगे जिससे मुल्क और क़ौम का नाम रोशन होगा!
लिहाज़ा इस वादे के साथ में ये समझता हूँ कि मौहम्मद अबुल फराह उर्फ़ “शाज़ली” को इस बार स्टूडेंट यूनियन की सदारत दी जाए ताकि आने वाली नस्लों के लिए ये नेक काम अंजाम दिया जा सके!
यासिर अराफ़ात तुर्क
सोशल एक्टिविस्ट, फ्रीलान्स जौर्नालिस्ट
रिसर्च स्कॉलर, डिपार्टमेंट ऑफ़ लिंग्विस्टिक्स
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़,
रिसर्च एरिया: लैंग्वेज, पॉलिटिक्स एंड मीडिया