मायावती इतनी सख्त क्यों हैं? इस बारे में उन्हें नेता बनाने वाले कांशीराम ने लिखा है- ‘मायावती अगर आज सख्त मिजाज दिखती हैं तो शायद इसकी वजह शुरुआती दिनों में हुआ उनका चौतरफा विरोध है। हर आदमी उनके खिलाफ था। पार्टी के कुछ पुराने नेताओं ने भी मायावती का विरोध किया। इन नेताओं ने मेरे ऊपर भी दबाव बनाया। सब चाहते थे कि मैं मायावती को आगे न बढ़ने दूं। मैंने इनकार किया तो कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी। आज वही दिग्गज मायावती का लोहा मानते हैं।’
घर से करना पड़ा विरोध का सामना
दरअसल, मायावती को राजनीति में आने से पहले अपने घर से भी विरोध का सामना करना पड़ा। हालांकि, उनके पिता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के अनुयायी थे, लेकिन जब 1984 में बीएसपी बनने पर मायावती सक्रिय राजनीति में उतरीं तो पिता ने कहा कि अगर तुमने कांशीराम का साथ नहीं छोड़ा तो परिवार से अलग कर दिया जाएगा। इस बारे में मायावती लिखती हैं,-‘पिता जानते थे कि लड़की घर छोड़कर नहीं जा सकती। उन्होंने मुझ पर दबाव बनाया, लेकिन मैंने उनकी एक नहीं सुनी।’ इसके बाद मायावती ने अपना घर छोड़ दिया। हालांकि, मायावती इससे पहले ही 1978 में बने ‘बामसेफ’ और ‘डीएस 4’ में कांशीराम के साथ राजनीति में सक्रिय हो चुकी थीं। इन दोनों संगठनों की स्थापना 1978 और 1981 में ही हो चुकी थी।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
मायावती की कांशीराम से मुलाकात और उनके राजनीति में आने की भी रोचक कहानी है। बात सितंबर 1977 की है जब जनता पार्टी ने दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में ‘जाति तोड़ो’ नाम से एक तीन दिवसीय सम्मलेन आयोजित किया। इसमें मायावती भी शामिल हईं। सम्मलेन का संचालन केंद्रीय मंत्री राजनारायण खुद कर रहे थे। वह कार्यक्रम में बार-बार हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहे थे। मायावती मंच पर आईं तो सबसे पहले उन्होंने हरिजन शब्द पर आपत्ति जताई और कहा की एक तरफ तो आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। यह शब्द ही दलितों में हीनता का भाव पैदा करता है। उनके भाषण को सुन सबने उनकी प्रशंसा की। सम्मेलन में मौजूद बामसेफ के कुछ नेताओं ने प्रभावित होकर यह बात कांशीराम को बताई। इसके बाद कई कार्यक्रमों में कांशीराम ने खुद मायावती के विचार सुने और एक दिन वह खुद मायावती के घर पहुंच गए। मायावती उस समय टीचर की नौकरी के साथ एलएलबी भी कर रही थीं। मेज पर किताबों को देखकर कांशीराम ने पूछा कि पढ़कर क्या बनना चाहती हो तो मायावती का जवाब था आईएएस बन कर अपने समाज की सेवा करना चाहती हूं। कांशीराम ने कहा कि कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि देश और प्रदेश की सरकारें जो चाहेंगी वही करना होगा और हमारे समाज में कलेक्टर की कमी नहीं है। कमी है तो एक ऐसे नेता की जो उनसे काम करवा सके। कांशीराम की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना छोड़ दिया और नेता बनने की ठान ली।
जितना विरोध हुआ, उतना बढ़ा कद
राजनीति में आने के बाद मायावती का जो सफर शुरू हुआ तो फिर आगे ही बढ़ता गया। बीएसपी में कांशीराम के रहते ही उन्होंने टॉप पोजीशन हासिल कर ली। हालांकि पार्टी के भीतर उनके समानांतर नेताओं ने उनका खूब विरोध किया, लेकिन वे पीछे छूट गए और मायावती आगे बढ़ती गईं। दीनानाथ भास्कर, आरके चौधरी, राज बहादुर, मसूद अहमद ऐसे ही शुरुआती नेता थे जिन्हें मायावती से विरोध के बाद बाहर होना पड़ा। इनके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद और अब स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई काडर बेस नेताओं ने बीएसपी छोड़ दी या निकाल दिए गए। यह सच है कि मायावती का विरोध करने वाले राजनीतिक तौर आगे नहीं बढ़ सके। इसी से मायावती का कद और बढ़ता गया।
गेस्टहाउस कांड के बाद बनीं सीएम
गेस्ट हाउस कांड मायावती के जीवन की एक बड़ी घटना है। वह उनके लिए एक डरावनी याद हो सकती है, लेकिन उसका दूसरा पहलू यह है कि उसके बाद ही मायावती पहली बार यूपी की सीएम बनीं। यूपी में 1993 में सपा और बीएसपी गठबंधन की सरकार बनी। उसमें मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। 1995 में बीएसपी ने समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया और दो जून को लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई, जिसमें मायावती भी मौजूद थीं। उसी दौरान वहां सपा नेताओं ने गेस्ट हाउस घेर लिया और बीएसपी विधायकों पर हमला कर दिया। बाद में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पहुंचकर मायावती का साथ दिया। उसी दिन बीजेपी ने बीएसपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। अगले दिन बीजेपी के समर्थन से मायावती यूपी की सीएम बन गईं।
मायावती: एक परिचय
पूरा नाम-मायावती नैना कुमारी
जन्म-15 जनवरी 1956
परिवार
पिता प्रभू दयाल
माता रामरती
अन्य सदस्य 6 भाई और 2 बहनें
माया बतौर सीएम
3 जून 1995-18 अक्टूबर 1995
21 मार्च 1997-21 सितंबर 1997
3 मई 2002-29 अगस्त 2003
13 मई 2007-15 मार्च 2012
बनाए कई कीर्तिमान
यूपी में सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री रहीं
प्रदेश की विधानसभा के इतिहास में पूरे कार्यकाल तक सीएम मुख्यमंत्री रहीं
देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी मायावती को ही हासिल है
विवादों से गहरा नाता
2002 में वह ताज कॉरिडोर मामले में विवादों में आईं। यहां ताज की खूबसूरती के लिए 175 करोड़ की परियोजना में बिना पर्यावरण विभाग की अनुमति के ही धनराशि जारी करने के आरोप लगे। इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश कोर्ट ने दिए। सीबीआई ने चार्जशीट भी दाखिल की, लेकिन 2007 में राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया।
मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का भी मुकदमा चला। वह 2007-8 में 26 करोड़ इनकम टैक्स जमा करके देश के सबसे बड़े 20 आयकर दाताओं में शामिल हो गई थीं। सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया था। मायावती ने इसे उपहार में मिली रकम दिखाया था। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केस खारिज कर दिया था। उसके बाद इसी साल फिर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्वीकार कर ली। हालांकि खुद केंद्र सरकार और सीबीआई इस मामले में मुकदमा दर्ज करना नहीं चाहती।
-मायावती का जन्मदिन भी विवादों का विषय रहा है। वह अपने जन्मदिन पर गिफ्ट लेने और नोटों की माला पहनने सहित कई बार चर्चा में आईं। हालांकि मुजफ्फरनगर दंगे होने पर उस साल उन्होंने जन्मदिन नहीं मनाया। उसके बाद से वह जन्मदिन सादगी से ही मनाकर अलग संदेश देने की कोशिश करती रही हैं।
पार्टी के टिकट बेचने के आरोप भी मायावती पर लगते रहे हैं।