आज हम आपको बताते हैं कि यह तिरंगा किसने और कब बनाया। दरअसल, आंध्र प्रदेश में जन्मे पिंगली वेंकैया को तिरंगे का अभिकल्पक माना जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले देश का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया था। उन्होंने काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान यह बात गांधी जी और वहां उपस्थित अनुआ लोगों के सामने रखी थी।
उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वैंकया महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। कुछ सालों तक कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में दो रंग वाले झंडे का प्रयोग किया लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी।
इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। पिगली द्वारा बनाये गए इस झंडे में लाल रंग हिंदुओं के लिए, हरा रंग मुसलमानों के लिए और सफेद रंग अन्य धर्मों के लिए इस्तेमाल किया गया था। चरखे को प्रगति का चिन्ह मानकर झंडे में जगह दी गई थी।