हम आपको अपनी खबर में बताने जा रहे हैं कि सिलेंडर पर एक्सपायरी डेट कैसे जानी जाए और हादसा होने पर उपभोक्ता को कंपनी की ओर से 50 लाख रुपए तक का बीमा कैसे लिया जाए…
सिलेंडर की पट्टी पर ए, बी, सी, डी और 12, 13, 15 लेटर और नंबर की सहायता से एक कोड लिखा होता है। गैस कंपनियां साल के कुल 12 महीनों को चार हिस्सों में बांटकर सिलेंडरों का ग्रुप बनाती हैं। मसलन, ‘ए’ ग्रुप में जनवरी, फरवरी, मार्च और ‘बी’ ग्रुप में अप्रैल मई जून होते हैं। ऐसे ही ‘सी’ ग्रुप में जुलाई, अगस्त, सितंबर और ‘डी’ ग्रुप में अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर होते हैं! सिलेंडरों पर लिखा कोड़ इन लेटर की सहायता से एक्सपायरी या टेस्टिंग का महीना दर्शाता है। साथ ही आगे लिखा नंबर एक्सपायरी ईयर का होता है। ‘A-12’ का मतलब सिलेंडर की एक्सपायरी डेट मार्च, 2012 है। ऐसे ही, ‘सी-12’ का मतलब सितंबर, 2012 के बाद सिलेंडर का इस्तेमाल खतरनाक है।
एक्सपायर्ड सिलेंडर मिलने पर उपभोक्ता एजेंसी को सूचना देकर सिलेंडर रिप्लेस करा सकता है। गैस एजेंसी के रिप्लेसमेंट से मना करने पर वह खाद्य या प्रशासनिक अधिकारी से शिकायत कर सकता है। इसे सेवा में भी कमी दिखने पर उपभोक्ता फोरम में मामला दायर किया जा सकता है। हाल ही में RTI से खुलासा हुआ है कि गैस कनेक्शन लेते ही उपभोक्ता का 10 से 25 लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा हो जाता है। इसके तहत गैस सिलेंडर से हादसा होने पर पीड़ित बीमा का क्लेम कर सकता है। साथ ही, सामूहिक दुर्घटना होने पर 50 लाख रुपए तक देने का प्रावधान है। इसके लिए दुर्घटना होने के 24 घंटे के भीतर संबंधित एजेंसी व लोकल थाने को सूचना देनी होगी और दुर्घटना में मृत्यु होने पर जरूरी प्रमाण पत्र उपलब्ध कराना होगा। एजेंसी अपने क्षेत्रीय कार्यालय और फिर क्षेत्रीय कार्यालय बीमा कंपनी को मामला सौंप देता है।
आपके घर में इस्तेमाल होने वाला गैस कनेक्शन वैध होना चाहिए। साथ ही ISI मार्का गैस चूल्हे का ही उपयोग हो। गैस कनेक्शन में एजेंसी से मिली पाइप-रेग्युलेटर ही इस्तेमाल हो। गैस इस्तेमाल की जगह पर बिजली का खुला तार न हो। चूल्हे का स्थान, सिलेंडर रखने के स्थान से ऊंचा हो !