गोरखपुर: इस मंदिर की परम्परा को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते है कि इस मंदिर प्रसाद के रूप में मटन बाटा जाता है| उत्तर प्रदेश के शहर गोरखपुर से 20 किलो मीटर कि दूरी पर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर है जहा आपको प्रसाद के रूप में मटन मिल सकता है तरकुलहा मंदिर का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं,बल्कि अंग्रेजो के शासन के समय का है |
यह हिन्दू अनुयायियों लिए बहुत ही प्रमुख धार्मिक स्थल है इस मंदिर में तरकुलहा देवी को जो प्रसाद चढ़ाया और वितरित किया जाता है वो मटन का होता है इसके साथ में बाटी भी दी जाती है। हर धार्मिक या ऐतिहासिक परम्परा के पीछे एक कहानी की भांति इसकी भी एक कहानी है। बात 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले की है। इस इलाके में जंगल हुआ करता था जहा नदी गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे देवी की उपासना किया करते थे। जब बंधू सिंह बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजो के खिलाफ क्रोध की ज्वाला जलने लगी। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे|