आज आपको राष्ट्रपिता गाँधी जी के बारे में एक ऐसी बात बताने जा रहे है जिसे सुनकर आपको उनके लिए ओर ज़्यादा सम्मान बढ़ जायेगा। जब 15 अगस्त 1947 को सभी भारतीय आज़ादी का जश्न मन रहे थे, तो गाँधी जी ही एक ऐसे शख्स थे, जो सिर्फ भारत की आज़ादी का जश्न नहीं मना रहे थे। इस बात के पीछे भी एक वजह थी, जो आज हम आपको बताने जा रहे है।
लेकिन क्या आपको पता है 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के जश्न में न तो महात्मा गांधी शरीक हुए और न ही 14 अगस्त को उनके शिष्य पंडित नेहरू द्वारा दिए गए ऐतिहासिक भाषण में शामिल हुए। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि भारत के विभाजन के आधार पर मिले आजादी गांधी को मंजूर नहीं थी यही वजह थी कि जजब भी भारत की आज़ादी की बात होती है तो देश के रा ष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम सबसे पहले सामने आता है।देश आजादी का जश्न मना रहा था उस समय देश का यह पिता बंगाल के नोआखली में दंगों की आग बुझा रहा था।
नोआखाली में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द कायम करने के लिए गांधी जी गांव-गांव घूमे। उनके पास धार्मिक पुस्तकें ही थीं। उन्होंने सभी हिन्दुओं और मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की और उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्याएं नहीं करेंगे। अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर उन्होंने पहले भारत घूमा बाद में 1919 में बिहार के चंपारण से जमीन पर आंदोलन की शुरुआत की। जिस राष्ट्रध्वज को आज सारा देश शान से फहराता है, शुरूआत में उसी तिरंगे को महात्मा गांधी ने अस्वीकार कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया था कि यदि इस तिरंगे को राष्ट्रध्वज घोषित किया गया तो मैं इसे सलाम नहीं करूंगा। गांधी तिरंगे के बीच में चरखा हटाकर ‘अशोकचक्र’ को शामिल करने से बेहद खफा थे।