हिन्दू धर्म ग्रंथों में मुहम्मद पैगम्बर साहब का जिक्र, जैसे सामवेद,अथर्व वेद,ऋग्वेद और ख़ास तौर पर भविष्य पुराण आदि में मुहम्मद पैगम्बर साहब की तारीफ बयान की गई है। जिसका हिंदुओं द्वरा स्वागत किया गया। भविष्य पुराण जिसमे पैगम्बर साहब का जिक्र उनके नाम के साथ किया गया है। जिसको कुछ लोगों ने गलत ठहराते हुए कहा की इस किताब को मुग़लकाल में लिखवाया गया है।
कथा ये है कि राजा भोज म्लेच्छ लोगों (म्लेच्छ का सही अर्थ है, विदेशी भाषा बोलने वाले व्यक्ति) के देश मे जाते हैं, जिस समय वहाँ म्लेच्छों के एक आचार्य (आध्यात्मिक गुरु) जिनका नाम महामद (मोहम्मद सल्ल.) है, अपने मत का प्रचार कर रहे हैं ॥ राजा भोज वहाँ के किसी बड़े देवालय मे जाकर वहाँ के अधिष्ठाता देवता की पूजा अर्चना करते हैं.
तब ये देवता राजा भोज को अरब मे आगे जाने और नबी सल्ल. से भेंट करने से रोकता है और मोहम्मद सल्ल. की निन्दा करता है, राजा भोज ये सुनकर वापस सिंधु प्रदेश आ जाते हैं । कुछ समय बाद मोहम्मद सल्ल. भी अपने शिष्यों (सहाबा) के साथ सिंधु तट पर आते हैं, और राजा भोज से कहते हैं कि राजन् तुम्हारे देवता मेरे दास (अनुयायी) बन गए हैं, देखो वो मेरे द्वारा छोड़ा हुआ भोजन कर रहे हैं, ये देख और सुनकर (श्रुत्वा तथा दृष्टा), भोजराज को महान आश्चर्य हुआ, और उन्होंने भी मोहम्मद सल्ल. के मत को अपनाने का मन बना लिया, ये देखकर कालिदास, मोहम्मद सल्ल. के विषय मे अपशब्द कहने लगता है, व मुस्लिमों को बिना अपने मत का प्रचार किए वापस अपने देश लौट जाना पड़ता है।
इसके बाद एक रात राजा भोज के सामने मोहम्मद सल्ल. देवरूप मे आते हैं, और बताते हैं कि आर्यधर्म सर्वश्रेष्ठ है, और मैं ईश्वर के आदेश से योद्धा धर्म का प्रसार करूंगा और इसके बाद मुसलमानों की निशानियों का वर्णन करते हैं ॥”
अब इस कथा मे नबी सल्ल. और इस्लाम की निन्दा कौन कौन करता है, और कौन इस्लाम का प्रसार करने का आदेश देता है, ये बातें गौर करने की हैं….
1- कथा मे सबसे पहले जो देव नबी सल्ल. की निन्दा करता है, बाद मे राजा भोज का वो ही आराध्य देव नबी सल्ल. का इस प्रकार अनुयायी बन जाता है कि आप सल्ल. का जूठा खाना भी प्रेम से खाने लगता है, और राजा भोज इस बात को खुद”देखते” और “सुनते” हैं, (ध्यान दीजिए संस्कृत शब्दों “श्रुत्वा” एवं “दृष्टा” पर) इससे एक बात तो ये सिद्ध होती है कि वो देव कोई दैवीय शक्ति नहीं, बल्कि एक साधारण व्यक्ति था, जो खुद को लोगों का देवता कहलवाता था, और जिसने इस्लाम कुबूल करने से पहले की स्थिति मे नबी सल्ल. और इस्लाम के विरुद्ध झूठ बोले थे ॥
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य मे देखें तो जब नबी सल्ल. ने इस्लाम का प्रचार शुरू किया तो अरब के अनेकों मन्दिरो के अधिष्ठाता इस्लाम के विरोध मे बहुत झूठ फैलाते थे, और अपने अनुयायियों को नबी सल्ल. से मिलने सेइसलिए रोकते थे क्योंकि मानवता, समानता और प्रेम भरी नबी सल्ल. की बातें हर सुनने वाले को प्रभावित कर लेती थीं, व झूठ उन बातों के आगे नहीं ठहरता था, इसी कारण उस देव ने जब वो स्वयं मुस्लिम विरोधी था तो भोज को नबी सल्ल. से मिलने से उसने रोका था, पर बाद मे जब वो स्वयं मुस्लिम बन गया तो भोजराज को इस्लाम की दावत देने स्वयं आया था ॥
2- कालिदास ने भी नबी सल्ल. के विषय मे अपशब्द बोले, पर कालिदास कोई दैवीय शक्ति नहीं बल्कि भारतीय धार्मिक पुरोहितों का प्रतीक है, और कालिदास का व्यवहार, इस्लाम के प्रसार से चिढ़े अन्य धर्मों के ठेकेदारों के व्यवहार का ही प्रतीक है, तो उस देव के द्वारा पहले इस्लाम के बारे मे कहे गए अपशब्दो की तरह ही कालिदास के अपशब्द भी इस्लाम या नबी सल्ल. के विषय मे न तो कोई सच्चा परिचय देते हैं, न ही ये ईशवाणी हैं, जिनसे कोई शिक्षा ली जाए ॥
3- ईश्वर का आदेश क्या था ये राजा भोजके सम्मुख प्रकट हुए नबी सल्ल. बताते हैं “कि मैं ईश्वर के आदेश से पिशाच धर्म (यानि सैन्य धर्म) का प्रसार करूंगा”
स्पष्ट है जब इस धर्म के प्रसार का आदेश ईश्वर का है, तो इससे ठीक पहले सर्वश्रेष्ठ बताया गया आर्य धर्म, यही सैनिक धर्म है ॥ और ये भी स्पष्ट है कि सारे जगत का स्वामी, ईश्वर एक है, जिसके आदेश का पालन करना समस्त मानवजाति का कर्तव्य है, न कि किसी एक देश या समुदाय के लोगों का ॥
4- उस धर्म का नाम भविष्य पुराण मे पिशाच धर्म बताया गया है, जिसके प्रसार का आदेश सर्वशक्तिमान ईश्वर ने महामद (मोहम्मद सल्ल.) को दिया है, और ईश्वर पवित्र और अच्छी बातों के ही प्रसार का आदेश दिया करता है फिर शब्द “पिशाच” का भी यहाँ अच्छा और पवित्र अर्थ ही होगा.
जांच पड़ताल करने पर मालूम चलता है कि शब्द पिशाच अपने उद्भव के समय बुरे अर्थो मे प्रयुक्त नहीं किया जाता था, तब महाभारत मे पाण्डवों की ओर से महाभारत का युद्ध लड़ने वाली एक जाति का जिक्र है जिनके लिए पिशाच शब्द व्यवह्रत था, विद्वानों के अनुसार ये आर्यो से अलग एक जाति थी ॥
पाणिनी ने अपनी अष्ठाधायी मे “पिशाच” शब्द की विवेचना करते हुए इन्हें एक सैन्य जाति बताया है , आधुनिक विद्वान पिशाच का अर्थ “पिशित” अर्थात् मांस खाने वालों से लगाते हैं, तो यहाँ शाब्दिक या ऐतिहासिक कोई भी अर्थ राक्षसी, दुष्ट या अमानवीय नहीं निकलता,
रहे वो लोग, जो अर्थ का अनर्थ कर के इस्लाम को राक्षसी धर्म कहा करते हैं, उनसे मैं इतना ही कहना चाहता हूँ, कि विधवाओं को जिन्दा जला डालने वालों की नजर मे विधवा पुनर्विवाह की शिक्षा देने वाला धर्म राक्षसवाद ही होगा, बेटी को जन्मते ही मार डालने वालों के लिए बेटी को बेटे के जैसे समान अधिकार और प्रेम से पालने की शिक्षा देने वाला धर्म राक्षसवाद ही लगेगा, और मनुष्यों को अछूत ठहराकर उनपर भयंकर अत्याचार करने वालों को समानता की शिक्षा देने वाला धर्म राक्षसवाद लगेगा, … इनके अलावा किसीको नहीं, अगर आप मानवता और दयालुता की नजर से देखेंगे तो भले ही इस्लाम को आप अपनाएं या न अपनाएं ,पर कम से कम इस्लाम का इस तरह अपमान तो हरगिज़ नहीं कर सकेंगे जैसा दूसरे करना चाहते हैं ॥
विषेशकर ‘भविष्य पुराण’ जिसमें नाम के साथ नबी सल्ल. का जिक्र किया गया है, की ऐतिहासिकता पर भी प्रश्न उठाए गए कि इस ग्रंथ को मुगलकाल मे लिखवाया गया… चलिए विरोध अपनी जगह ठीक है, परंतु इधर सोशल मीडिया पर हमने अजीब सा चलन देखा, एक ओर तो भविष्य पुराण के अनेकों श्लोकों, जिनमें नबी सल्ल. की प्रशंसा की गई है, और हिन्दुओं से इस्लाम धर्म अपनाने की अपेक्षा की गई है, उन श्लोको पर तो कट्टरतावादी लोग अविश्वास जताते हैं, पर भविष्य पुराण के नबी सल्ल. और इस्लाम के विषय मे कहे गए गलत शब्दों पर पक्का विश्वास जताते हैं …
इन गलत शब्दों का ये लोग बड़ा प्रचार करते हैं, कि हमारे ग्रंथ मे तो मुसलमानों के नबी (सल्ल.) को असुर और इस्लाम को पिशाच धर्म यानि राक्षसी धर्म कहा गया है (अल्लाह माफ करे)
इस दुष्प्रचार के कारण हमने ये ज़रूरत महसूस की कि भविष्य पुराण के विषय मे एक पोस्ट डालकर ये बताया जाए कि सच्चाई क्या है, क्योकि वास्तव मे भविष्य पुराण मे जो शब्द हैं, वो किसी को भी असमंजस मे डाल सकते हैं ॥
ये तो एक सत्य है कि नबी सल्ल. से पहले अनेक समुदायों मे आप सल्ल. के आगमन के विषय मे कई भविष्यवाणियां की गईं हैं, भविष्य पुराण की नबी सल्ल. सम्बन्धी भविष्यवाणियां भी उन्हीं मे से एक हो सकती है ॥ बता दें कि केवल कुरान पाक को छोड़कर, अन्य सभी धार्मिक किताबें मिलावट से अछूती नहीं रही हैं, भविष्य पुराण के विषय मे भी ये ही बात कही जा सकती है कि इसका हर वाक्य, हर शब्द विश्वास योग्य नहीं, अलबत्ता हमारा विश्वास ये है कि अल्लाह ने अनेक बदलाव आने के बावजूद इन किताबों मे इतना इशारा जरूर बाकी रखा है.
जिसपर विचार कर के नेक बुद्धि वाले लोग इस्लाम के करीब आ सकें, दरअसल ये बातें उन भाईयों के सवालों का जवाब हैं जो कहते हैं कि अगर इस्लाम ही अल्लाह का पसंदीदा मज़हब है तो उसने हमें गैरमुस्लिम परिवारों मे क्यों पैदा किया, तो भाईयों, अल्लाह ने आपको गैर मुस्लिम घरानो मे पैदा किया तो इस्लाम के करीब करने को इतनी तैयारियां भी कर दीं ॥
ध्यान रखने योग्य बात ये भी है कि केवल भविष्य पुराण की ये कथा किसी ठीक निष्कर्ष पर तब तक नहीं पहुंचा सकती जब तक इस का विवेचनात्मक अध्ययन और इस्लाम और उसके पूर्ववर्ती धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन न कर लिया जाए… इस अध्ययन मे हम पाठकों की कुछ मदद करने का प्रयास कर रहे हैं, और हिन्दू विद्वानो द्वारा बताए गए कथा के अर्थ को प्रस्तुत करेंगे, पर अनुवादको ने दुर्भावनावश जो बुरे शब्द अपनी ओर से जोड़े हैं, उनसे बचेन्गे,
उससे पहले ये भी समझ लीजिए कि अगर इस कथा को भविष्य कथन मानकर पढ़ते हैं, तो ज्योतिष विज्ञान के आम नियम के अनुसार कथा का हर घटनाक्रम अक्षरश: वैसा ही वास्तव मे घटित नहीं होगा जैसा लिखा है, बल्कि कई बातें प्रतीकात्मक भी होंगी, जैसाकि कथा मे नबी सल्ल. को सिंधु तट पर आया बताया गया है जबकि इतिहास मे ऐसा कभी नहीं हुआ था, इसी तरह किसी भोजराज या कालिदास से भी नबी सल्ल. की कोई भेंट इतिहास मे दर्ज नहीं है, अत: इन बातों के गूढ़ अर्थ समझने होंगे