चुम्बक में एक ताक़त होती है जो लोहे को अपनी ओर आकर्षित करती है, अगर हम चुम्बक को एक जगह पर रखे और उसके चारो तरफ लोहे का चूर्ण फैला दे तो उसका रूप कुछ इस तरह हो जाता है. ये काम हम खुद अपने घर पर ही करके देख सकते है क्योंकि चुम्बक और चूर्ण की प्रतिक्रिया हमे खुली आँखों से दिखाई दे जाएगी.
लेकिन चुम्बक से निकलने वाली किरणों को हम नहीं देख सकते, उनको तो सिर्फ चूर्ण की स्थान बदलने से ही पता लगता है. ये तो हम सबको पता ही है कि ब्रह्मांड में जितनी भी चीज़े हैं सब एक दूसरे के प्रतिरूप ही हैं. वही दूसरी तरफ विज्ञानं के अनुसार, किसी भी तत्व के नाभिक के चारो तरफ इलेक्ट्रान घूमते रहते हैं. इसी तरह सूरज के चारो तरफ धरती और अन्य ग्रहे घूमते रहते है.
अगर इसी तरह चुम्बक को कुचय देर के लिए काबा शरीफ का छोटा प्रतिरूप मान लिया जाये और चूर्ण के कणो को नमाज़ियों का प्रतिरूप मन लिया जाये चूर्ण के सारे कर्ण चुम्बक (काबा शरीफ) के पास जाते हैं, साथ ही एक प्रकार की पंक्ति(सफ) में इखट्टे हो जाते हैं. जबकि हमको काबे शरीफ से निकलने वाली किरण दिखाई तो नहीं दे रही है लेकिन काबे शरीफ की चुंबकीय ताक़त का अंदाज़ा उसके चारो ओर तवाफ़ करने वाले लोगो से हो जाता है.
चुम्बक, चूर्ण, काबा और हाजियो में समानता:
हालाँकि चुम्बक एक सामान पावर से अपने चारो तरफ लोहे के चूर्ण को अपनी ओर खींच रही है, लेकिन अगर इसमें कुछ ऐसा चूर्ण भी है जो शुद्ध लोहा नहीं है जो उसका चुम्बक की ओर आने का अनुपात शुद्ध के मुक़ाबले काम होगा. इससे यह निष्कर्ष निकला है कि
“अगर आपके दिल में दुनियावी मुहब्बत ज़्यादा है ओर अल्लाह कि मुहब्बत काम है तो हमारा झुकाव उस रूहानी ताक़त कि ओर काम जायेगा जब तक हम अपने दिल से नफरत, बुग़्ज़ इत्यादि को बाहर नहीं कर देते”.
चुम्बक में सिर्फ अपनी ओर खींचने कि ही ताक़त नहीं होती, बल्कि अपने से दूर करने की की भी ताक़त होती है. इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि
“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह: सिर्फ एक ही खुदा कि इबादत करनी चाहये, अगर उसके अलावा किसी ओर की मुहब्बत दिल में है मुख़्य शक्ति से आप दूर हो जाएंगे, जिसे शिर्क कहा जाता है.”
अब नमाज़ियों की पंक्तियो की ओर आते हैं: अगर काबा शरीफ से बन्ने वाली पंक्तियों पर नज़र डाले ओर सफो को पीछे की ओर करते चले जाये, तो देखते ही देखते पूरी दुनिया में लोग काबे की तरफ मुंह करके नमाज़ पद रहे हैं और आपस में दूसरे देशो के साथ भी एक नयी सफ भी बना रहे हैं.
आखिर में, इस तरह पूरी दुनिया से लोग एक साथ नमाज़ पढ़कर खुद काबे शरीफ को दुनिया दुनिया का केन्द्र बना रहे हैं. जिससे काबे शरीफ को दुनिया का केंद्र बिंदु कहा जाता है.