एक बार रसूल -अल्लाह सल्लल -अल्लाह अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा रदी अल्लाह अन्हु से एक दिन फ़रमाया क्या तुम ये जानते हो की सूरज कहाँ जाता है ?उन्होंने कहा की अल्लाह और उसका रसूल खूब जनता है , आप सल्लल -अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये चलता रहता है यहाँ तक की अपने ठहरने की जगह यानि अर्श के नीचे आ जाता है और वहां सज़दे में गिर जाता है , फिर इसी हाल में रहता है यहाँ तक की उसे हुक्म होता है ऊँचा हो जा और जा जहाँ से आया है!
वो लौट आता है और अपनी निकलने की जगह से निकलता है और फिर चलता रहता है यहाँ तक की अपनी ठहरने की जगह पर अर्श के नीचे आ जाता है और सज़दा करता है फिर इसी हाल में रहता है यहाँ तक की उसे कहा जाता है ऊँचा हो और लौट जा जहाँ से आया है और फिर वो निकलता है अपनी निकलने की जगह से! एक बार वो इसी तरह चलेगा और लोगो को उसकी चाल में कोई फ़र्क़ मालूम नहीं होगा ,यहाँ तक की वो अर्श के नीचे अपनी ठहरने की जगह पर आएगा उस वक़्त उस से कहा जाएगा की ऊँचा हो जा और पश्चिम की तरफ से निकल जा जिधर तू डूबता है वो निकलेगा पश्चिम (मग़रिब ) की तरफ से !
रसूल -अल्लाह सल्लल -अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुम जानते हो ये कब होगा ? इस उस वक़्त होगा जब किसी को ईमान लाना फायदेमंद नहीं होगा जो पहले ईमान न लाया हो या उसने ईमान के साथ नेक काम न किया हो .