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भारत फिर से कहलाएगा सोने की चिड़िया, मिला है बेशकीमती धातुओ का खजाना

देहरादून: उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में स्थित अस्कोट की पहाड़ी के नीचे बेशकीमती धातुओं का खजाना भरा है। एक सर्वे के अनुसार सोना, तांबा, चांदी, लेड, शीशा, जस्ता जैसी एक लाख 65 हजार मीट्रिक टन धातु छिपी हुई हैं। भारत को पहले भी सोने की चिड़िया कहा जाता था। फिर अंग्रेजों ने इसे लूट लिया, लेकिन अब एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि भारत जल्द ही फिर से सोने की चिड़िया के नाम से जाना जायेगा।

जी हां इस खनिज संपदा देश को फिर से सोने की चिड़िया बना सकता है, फिर भी यहाँ की सरकार इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण कदम उठाने का नाम नहीं ले रही है । अस्कोट की पहाड़ी के नीचे दबा यह ऐसा खजाना है जिसे पाने के लिए पूरी दुनिया नजरें टिकाए है। मिनरल एक्प्लोरेशन कारपोरेशन (एमइसी) ने यहां पर 30 वर्षों तक खनन किया और धातु निकाली थी। इससे पहले डीजीएम ने यहां पर सर्वे कर धातु निकाला। डीजीएम के कुछ कर्मचारी अभी भी यहां पर हैं।यह जगह अस्कोट की तामखान (तांबे की खान) नाम से प्रसिद्ध है। जबकि अस्कोट कस्तूरा मृग बिहार लागू होने के बाद एमइसी ने यहां पर खनिजों को निकालने का काम रोक दिया भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय के किए सर्वे के अनुसार वर्ष 2003 में कनाडा की प्रसिद्ध आदि गोल्ड कंपनी ने यहां हाथ डाला। सरकार से अनुमति लेकर आदि गोल्ड कंपनी की भारतीय शाखा ने यहां पर सर्वे किया।

बता दें कि कंपनी ने सर्वे की रिपोर्ट के बाद यहां पर धातुओं के खनन होने पर अस्कोट क्षेत्र में 200 करोड़ रुपये निवेश करने का निर्णय लिया। अस्कोट में कंपनी ने अपना कार्यालय खोला और सर्वे के लिए बाहर से अत्याधुनिक मशीनें आई।कंपनी ने सरकार से खुले खनन के लिए वर्ष 2007 में 30 साल की लीज की अनुमति मांगी, जिसे सरकार अभी तक नहीं दिया। सुस्त सरकारी रवैये से कंपनी ने अपना सामान समेट यहां ताला लगा दिया। कई सालों पहले अस्कोट कस्तूरा मृग अभ्यारण्य भी हट चुका है। पहले खनन की लीज में अभ्यारण्य के कानून बाधक थे। बाधा दूर होने के बाद भी खनिजों को लेकर सरकार कोई रूचि नहीं दिखा रही है।

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