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वहाबी व सलफ़ी सुन्नी नहीं बल्कि ख़्वारिज हैं, मध्य एशिया में चरमपंथ का समर्थन करते हैं: अलअज़हर यूनिवर्सिटी मुफ़्ती

कैरो: सुन्नी मुसलमानों का दुनिया की सबसे बड़ा इस्लामी इदारा मिस्र की अलअज़हर यूनिवर्सिटी के मुफ़्ती अहमद करीमा ने कहा है कि वहाबी व सलफ़ी सुन्नी नहीं बल्कि ख़्वारिज हैं। यह बात उन्होंने अलवक़्त वेबसाइट से इंटर्व्यू में कही। अहमद करीमा ने कहा कि वहाबी व सलफ़ी मध्य एशिया में चरमपंथ का समर्थन करते हैं और अलक़ाएदा, बोको हराम, दाइश तथा तालेबान जैसे चरमपंथी गुटों का खुल कर समर्थन करते हैं।

उन्होंने कहा की सलाफ़ी/वहाबी सुन्नी तालीमात को ना मानने के कारण तथा इस्लाम के चार हनफी, शाफ़ई, हम्बली तथा मालिकी स्कूल के खिलाफ होने के कारण यह (वहाबी/सलाफ़ी) सुन्नी नही है. गौरतलब है की पिछले महीने चेचन्या में हुए “अहले सुन्नत” कांफ्रेंस में पूरे दुनिया के 200 से अधिक प्रतिष्ठित और प्रमुख इस्लामी विद्वानों ने हिस्सा लिया था और उसमे वहाबियो और सलफियो को सुन्नी नहीं माना गया था, इस कांफ्रेंस को पूरी दुनिया में सराहा गया था.

उन्होंने कहा कि वहाबी विचार रखने वालों ने ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, चेचन्या और क्षेत्र के दूसरे देशों में चरमपंथी व हिंसक विचारों को फैलाने की कोशिश की है।मिस्र के मुफ़्ती ने कहा कि अभी तक अलअज़हर ने किसी को कुछ नहीं कहा। वहाबी ख़्वारिज हैं। यह पथभ्रष्ट मत है जिसने इमाम अबल हसन अशअरी और इमाम अबुल मंसूर मातरीदी को काफ़िर कहा। इस कांफ्रेंस के बाद सऊदी अरबिया और क़तर में खलबली मची हुई है! दुनिया-ए-इस्लाम में सबसे अहम् इदारे अल अजहर मिस्र के मुख्य मुफ़्ती अहमद अल तय्येब और अन्य तकरीबन दो सौ मुफ्तियों के सलाफियत के खिलाफ स्टैंड लेने की वजह इस्लामी दुनिया में एक बहस के फिर से नए होने का अंदेशा है!