बरेली: सऊदी अरब की हुकूमत एक बार से ज्यादा हज व उमरा करने वालों पर दो अक्तूबर से टैक्स लगाने जा रही है। मुफ्ती-आजम-ए हिंद के पुराने फतवे का हवाला देते हुए बरेलवी उलमा ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। उन्होंने इसे हराम करार देते हुए रोक लगाने को कहा है।
ऐसा टैक्स पहले 1946 में लगाया गया था। तब मुफ्ती आजम-ए- हिंद हजरत मुस्तफा रजा खां के इसे हराम करार देने के बाद इसे वापस ले लिया गया था। सऊदी अरब सरकार का फरमान है कि पहली बार हज पर जाने वालों को तो इस टैक्स से माफी दी है लेकिन दूसरी बार या उससे अधिक जाने पर दो हजार रियाल यानी करीब 35000 रुपये टैक्स देना होगा। नबीरे आला हजरत मौलाना सिराज रजा खां के अनुसार इस टैक्स के खिलाफ आला हजरत इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी के छोटे साहबजादे मुफ्ती आजम-ए-हिंद हजरत मुस्तफा रजा खां का फतवा है। इसकी अनदेखी कर वहां की हुकूमत ने अब फिर टैक्स वसूली के लिए कानून बना दिया। इस कानून के उल्लंघन पर सजा ए मौत का प्रावधान रखा गया है। मौलाना सिराज ने कहा कि यह फैसला सरासर गलत है।
मौलाना शहाबउद्दीन रजवी ने बताया कि मुफ्ती आजम हिंद ने वर्ष 1946 में मक्का शरीफ में वहां की हुकूमत की नाक के नीचे बैठ कर हुकूमत की ओर से लगाए गए टैक्स के खिलाफ फतवा दिया था। मुफ्ती आजम-ए-हिंद ने लिखा था ‘हज एक इबादत है और इस्लाम के अरकान में से एक फर्ज है। इस पर टैक्स लगाना नाजायज है क्योंकि टैक्स एक तरह का जुर्माना है और इबादत पर जुर्माना लगाना हराम व गुनाह है।’ इस फतवे पर मिस्र, शाम, लेबनान, सूडान, फिलिस्तीन, तुर्की और अल-जजाइर के उलमा के हस्ताक्षर भी हैं जो उस वक्त वहां मौजूद थे। फतवे में शरियत का हवाला जान कर वहां की हुकूमत उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। बल्कि फतवे के आगे झुकना पड़ा और टैक्स वापस लेना पड़ा।
मौलाना रजवी ने कहा कि इसी तरह उमरा का भी मामला है क्यों कि यह भी इबादत है। बरेली आए हुए मौलाना सईद नूरी (मुंबई), कारी अमानत रसूल (पीलीभीत), मौलाना तस्लीम रजा खां, मौलाना डा. एजाज अंजुम आदि ने भी इसे सीधे-सीधे हराम व नजायज करार दिया है।