नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को सरकार से साफ शब्दों में कहा कि उसने कभी गे, लेस्बियन और बायसेक्सुअल को तीसरा जेंडर नहीं माना।कोर्ट ने अप्रैल 2014 में थर्ड जेंडर को लेकर दिए अपने फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा कि सिर्फ ट्रांसजेंडर को ही तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी गई है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट के 2014 के फैसले में संशोधन की मांग की थी. केंद्र ने अदालत से कहा कि उसे न्यायालय के फैसले को लागू करने में परेशानी हो रही है, क्योंकि आदेश के एक पैरा में लेस्बियन, गे और बायसेक्सुअल को भी ट्रांसजेंडर के साथ तीसरे लिंग के दर्जे में रखा गया है।
‘कोई उलझन नहीं, फॉर्म में बनाए नई कटैगरी’
इस पर कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई उलझन की स्थिति नहीं है। इसमें साफ-साफ लिखा है कि लेस्बियन, गे और बायसेक्सुअल थर्ड जेंडर की कटैगरी में नहीं आते। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह फॉर्म में थर्ड जेंडर की कटैगरी बनाए। यही नहीं, कोर्ट ने तीसरे लिंग को ओबीसी मानने और इस आधार पर शिक्षा और नौकरी में रिजर्वेशन की भी बात कही।