सऊदी अरब में मुस्लिम तीर्थ स्थल मक्का के पास स्थित रमीजमारात में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के साथ ही हज पूरा माना जाता है। ये हज-यात्रा का सबसे चुनौतीपूर्ण और खतरनाक पड़ाव माना जाता है। हालाँकि शैतान को पत्थर मारने की यह रस्म तीन दिन की होती है, लेकिन ईदु-उल- ज़ुहा के पर्व पर इस रस्म की शुरुआत होने के कारण सभी तीर्थयात्री इस मौके पर ही शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी करने की हसरत रखते हैं।
हज पर गए लोग तीसरे दिन अपने बेस कैंप से निकलकर रमीजमारात जाते हैं जहां तीन बड़े खंबे हैं। यही खंबे दरअसल शैतान हैं जिन पर कंकरी पेंककर लानत भेजी जाती है और इस रस्म के साथ ही हज पूरा हो जाता है। ऐसा मानना है कि एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से क़ुर्बानी में उनकी पसंदीदा चीज़ मांगी। हज़रत इब्राहिम की एक औलाद थी जिसका नाम था इस्माइल। ये औलाद काफी बुढ़ापे में पैदा हुई थी और हज़रत इब्राहिम उसे प्यार भी बहुत करते थे। लेकिन अल्लाह का हुक़्म मानकर वह अपने जिगर के टुकड़े की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। हज़रत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर क़ुर्बानी देने जा रहे थे तभी रास्ते में सैतान मिला और उसने उनसे कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की क़र्बानी दे रहे हैं और उसके मरने के बाद कौन उनकी देखभाल करेगा।
हज़रत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए और उनका क़ुर्बानी का इरादा भी डवांडोल होने लगा लेकिन फिर वह संभल गए और क़ुर्बानी देने चले गए। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर बकरे और मेमनों की बलि देने की प्रथा चल निकली। इस तरह मुसलमान हज के आख़िरी दिन बक़रीद पर क़ुर्बानी देने के बाद रमीजमारात जाकर उस शैतान को पत्थर मारते हैं जिसने हज़रत इब्राहिम को वरग़ालाने की कोशिश की थी। इस सँकरी घाटी में बने पुल से होकर गुजरने वाली लाखों की भीड़ को संभाल पाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। वर्ष 2006 में भीड़ के अनियंत्रित होने के कारण मची भगदड़ में 362 लोगों की मौत हो गई थी।