नई दिल्ली। पहले नदियों और नालों में नोट ग़लती से गिर जाया करते थे। मंदिरों में चढ़ावा चढ़ता था लेकिन पांच सौ और हजार के नोट कम ही लोग इस्तेमाल करते थे। लेकिन अब नजारा बदल गया है। आठ नवंबर को इन नोटों पर पाबंदी के ऐलान के साथ ही नदियों और नालियों में नोट गिर नहीं रहे हैं। बल्कि गिराए जा रहे हैं। मंदिरों में जो पुजारी दानपत्र पर टकटकी लगाकर उसके भरने का इंतजार करता था, अब उसके पास लोग चढ़ावा चढ़ाने के लिए जा रहे हैं। मंदिरों में जो चढ़ावे 10 या बीस रूपए के रूप में चढ़ते थे वो अब पांच सौ और एक हजार की शक्ल में चढ़ रहे हैं। सरकार की नजरों में अब वो नोट सिर्फ कागज के टुकड़े हैं। लेकिन काले धन के कुबेरों को लगता है कि शायद उन कागजों के टुकड़ों का वो सफेद करने के साथ ही कुछ पुण्य कमा लेंगे।
इसके अलावा तमिलनाडु के जलकांडेश्वरर मंदिर में इतना चढ़ावा चढ़ा कि अंदाजा लगाना मुश्किल होगा। वेलोर के इस मंदिर में अब तक 44 लाख पुराने नोट चढ़ाये गए हैं बताया जा रहा है कि ये मात्रा अभी और बढ़ सकती है।
गुवाहाटी के रुक्मिनीनगर इलाके में न केवल नालियों में नोट बहाए जा रहे हैं,बल्कि पचास और एक हजार के नोट इधर धर बिखरे मिल रहे हैं।