नवाब फैजुल्लाह खान द्वारा बसाए गए शहर रामपुर में लोकसभा के तीसरे चरण के लिए 23 अप्रैल को मतदान होने हैं। यहां बीजेपी की जया प्रदा का सीधा मुकाबला उनके सियासी गुरु आज़म खान से है।
आज़म खान समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता हैं और यहां से मौजूदा विधायक भी हैं। इस सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्ज़ा है। मोदी लहर में 2014 में बीजेपी के नेपाल सिंह यहां से सांसद चुने गए थे।
यहां की जनता ने नरेंद्र मोदी के विकास और रोज़गार के दावों पर विश्वास कर नेपाल सिंह को संसद पहंचाया था, लेकिन ज़िले के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। जिसकी वजह से यहां काफी हद तक सत्ता विरोधी लहर देखने को मिल रही है।
यहां कांग्रेस ने संजय कपूर को चुनावी मैदान में उतारा है। लेकिन वह मुकाबले में कहीं नज़र नहीं आ रहे। यहां सीधा मुकाबला बीजेपी की जया प्रदा और सपा के आज़म खान के बीच है।
जया प्रदा और आज़म खान के बीच जारी ज़ुबानी जंग की वजह से यह सीट राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। हर किसी की नज़र इस सीट पर टिकी हुई है।
पश्चिमी यूपी की इस सीट पर 11 उम्मीदवार मैदान में हैं। जिसमें चार महिला उम्मीदवार हैं और 5 निर्दलीय। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीट आती हैं। जिसमें से एक आज़म खान की सीट है।
कभी नवाबों की रियासत के रूप में मशहूर इस ज़िले में आज़म खान का खासा दबदबा है। आज़म खान ही वह शख्स हैं, जो पहली बार 2004 में जया प्रदा को यहां लेकर आए थे और कांग्रेस के दशकों पुराने किले को ढ़हाने में कामयाब हुए थे।
उनकी बदौलत ही समाजवादी पार्टी पहली बार यहां से जीती थी। कांग्रेस के कब्ज़े में यह सीट 16 में से 10 बार रह चुकी है।
मुस्लिम बहुल इस सीट पर लंबे समय तक नवाब परिवार का कब्जा रहा है। पांच बार जुल्फिकार अली खान और दो बार उनकी बेगम नूरबानो सांसद चुनी गईं।
यह वही सीट है जहां आजादी के बाद पहले सांसद डॉक्टर अबुल कलाम आजाद चुने गए थे। यहां से बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार मुख्तार अब्बास नक़वी भी 1998 में सांसद रह चुके हैं।
वहीं माना जाता है कि 2004 और 2009 में जया प्रदा भी मुसलमानों के समर्थन से ही सांसद बनी थी। इस बार जया प्रदा बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रही हैं और उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार आज़म खान से है।
ऐसे में जया प्रदा को मुसलमानों का समर्थन मिलता नज़र नहीं आ रहा। इसके साथ ही बीजेपी के नेपाल सिंह के पिछली बार के कामों को देखते हुए भी बीजेपी के पक्ष में कोई खास लहर दिखाई नहीं दे रही। इन सभी फैक्टर्स को देखते हुए यहां आज़म खान की दावेदारी मज़बूत कही जा सकती है।