नई दिल्ली: हम आपको बता दें कि बीजेपी को इस बात की पूरी उम्मीद है कि वह जनता के दिलों में अपनी जगह कायम रखने के लिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सफल रहेगी। हम आपको यह भी बता दें कि तमाम नेताओं और बीजेपी समर्थकों का दावा है कि इस बार पार्टी 300 सीटों का आंकड़ा पार कर सकती है।
हालांकि इस मिशन में भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती उन्हीं राज्यों से मिलने की संभावना है जहां से साल 2014 में उसे निर्णायक सीटें हासिल हुई थीं। ये 7 राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान। बता दें कि भाजपा को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 282 सीटें मिली थीं, जिसमें से 196 सिर्फ इन्हीं 7 राज्यों के हिस्से की हैं।
लोकसभा की कुल 543 में से 273 सीट इन्हीं राज्यों के खाते में है। जिसका अर्थ यह भी है कि लोकसभा की कुल सीटों का 36 फीसदी हिस्सा इन 7 राज्यों में है। इन 7 राज्यों में 44 सीटें भाजपा के सहयोगी यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल रहे दलों को भी मिली थीं। हालांकि साल 2019 के लिए भाजपा की मुश्किलें इन्हीं 7 राज्यों में पैदा हो रही हैं। कहीं नए सामाजिक और राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं तो कहीं NDA के दल ही उसके खिलाफ हो रहे हैं।
भाजपा को उपचुनाव में दिखी झलक!
साल 2014 के आम चुनाव में सबसे ज्यादा हलचल जिस राज्य में हुई वो था उत्तर प्रदेश। यहां की 80 में से 71 सीटें अकेले भाजपा को मिली थीं और 2 सीटें सहयोगी अपना दल को। हालांकि राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने से यह माना जा रहा है कि साल 2019 के चुनाव में भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी।
भाजपा को इसकी झलक हाल ही में संपन्न हुए गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों से भी मिल गई है। यहां सबसे पिछड़ा वर्ग भाजपा का अचूक हथियार था लेकिन इस गठबंधन ने इस समीकरण को तोड़ दिया। उपचुनाव में सपा ने दोनों जगहों से सबसे पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार उतारे और वो सफल रही है। दरअसल, राज्य में बसपा और सपा का वोटबैंक बड़ा है। दोनों दलों का अपना मजबूत और कोर वैट बैंक है।
महाराष्ट्र और बिहार में यह है मुश्किल
बात महाराष्ट्र की करें तो यह यूपी के बाद दूसरा बड़ा राज्य है। यहां 48 सीटें हैं जिसमें से बीते साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 23 और NDA में सहयोगी रही शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। हालांकि इस बार शिवसेना से भाजपा के रिश्तों में दरार आ गई है जिसका असर साल 2019 के आम चुनाव में देखने को मिल सकता है। दूसरी ओर बिहार में भाजपा को कड़ी मेहनत करनी होगी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 में से 22 सीटें मिली थीं और NDA के सहयोगी दलों को 9 सीटें मिली थीं। साल 2014 में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ने साथ चुनाव लड़ा था जबकि जनता दल युनाइटेड ने अलग। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के जदयू लड़ेगी इसके बाद भी भाजपा के सामने दो बड़ी मुश्किलें हैं।
लालू का MY समीकरण
बिहार में पहली मुश्किल यह है कि लालू प्रसाद यादव एमवाई (मुस्लिम और यादव) समीकरण के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग पर भी अपनी निगाह गड़ा रहे हैं। जीतनराम मांझी का NDA छोड़ लालू के साथ आना इसी बात के संकेत है। बीते दिनों संपन्न हुए बिहार के उपचुनाव में राजद की जीत के लिए यह नया सामाजिक समीकरण भी जिम्मेदार है। इसके साथ ही दूसरी बड़ी मुश्किल NDA में शामिल उपेंद्र कुशवाहा की ओर से है। माना जा है कि कुशवाहा भी साल 2019 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे।
गुजरात में तिकड़ी है सामने
इतनी ही मुश्किलें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गृहराज्य गुजरात में भी सामने आ सकती हैं। यहां हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी ने नए सामाजिक और राजनीतिक समीकरण तैयार किए हैं जिसका असल बीते साल गुजरात विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था जहां 150+ का आंकड़ा लेकर चल रही भाजपा बहुमत से सिर्फ 7 सीट ज्यादा पा सकी थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की सभी 26 सीटें मिली थीं। तिकड़ी का असर जो गुजरात के विधानससभा चुनाव में देखने को मिला था वो लोकसभा में भी दिख सकता है ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें मोदी और शाह के गृह राज्य में भी हैं।
आंध्र में TDP ने छोड़ा साथ, इन जगहों पर मजबूत हो रही कांग्रेस
बात आंध्र प्रदेश की करें तो यहां की 25 लोकसभा सीटों में से भाजपा सिर्फ 2 ही जीत सकी थी लेकिन उसकी सहयोगी तेलगु देश पार्टी ने 15 सीटें जीती थीं, ऐसे में NDA के खाते में आंध्र से कुल 17 सीटें थीं। हालांकि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर भाजपा और TDP की राहें जुदा हो गई हैं। ऐसे में यहां भाजपा को नए दल की तलाश होगी। वहीं मध्य और राजस्थान में भी हालात भाजपा के लिए अच्छे नहीं हैं। दोनों ही राज्यों में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ अच्छा प्रदर्शन नहीं किया बल्कि पहले से अपनी स्थिति और मजबूत की। ये वो दो राज्य हैं जहां भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होता है।
बीते 4 सालों में बदले समीकरण
ऐसे में बीते 4 साल में बदले समीकरण, NDA में घटते दल और भाजपा के अपनी ही दोस्त उसके लिए साल 2019 के मिशन पर ग्रहण लगा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने यह खुद कहा था कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बसपा और सपा ने सौदेबाजी कर ली थी। फिलहाल जो स्थितियां उनमें भाजपा को नए सिरे से तैयारी करनी होगी।