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रोहिंग्या मुसलमानों से हमदर्दी जताने पर बीजेपी महिला नेता के साथ हुआ कुछ ऐसा

मोदी सरकार ने म्यांमार से आए मुसलामानों को अवैध और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है और उन्हें भारत देश से निकालने का फैसला भी किया है। रोहिंग्या मुसलामानों पर मोदी सरकार सख्त कार्यवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट पहुँच कर मोदी सरकार ने कदम खींच लिए हैं।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि रोहिंग्या परिवारों के प्रति मोदी सरकार सहानुभूति व्यक्त कर रही है। गृह मंत्रालय साफ तौर पर कह चुका है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण नहीं देगा, बल्कि उन्हें वापस लौटा देगा। इस बीच एक बीजेपी नेता को रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति ‘हमदर्दी’ जाहिर करना भारी पड़ गई है।

तीन तलाक के खिलाफ पार्टी का चेहरा रहीं और असम बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बेनजीर अरफां को रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन वाले कैंप में शामिल होने पर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। वर्ष 2012 से बीजेपी के साथ जुड़ी बेनजीर का कहना है कि गुरुवार को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने उन्हें पार्टी से निष्कासित करते हुए वॉट्सऐप पर सस्पेंसन पत्र भेजा।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक, पेशे से इंजिनियर बेनजीर का कहना है कि इस तरह से पार्टी से निकालना मेरा अपमान करना है। इस पूरे प्रकरण से नाराज बेनजीर ने अखबार को बताया कि इस मुद्दे पर मैं पार्टी हाईकमान से शिकायत करूंगी। उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में एक बैठक में हिस्सा लिया था, जिसके चलते उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया।

‘तीन तलाक’ के खिलाफ BJP का चेहरा रहीं बेनजीर

दरअसल, 2016 के विधानसभा चुनाव में बेनजीर ने असम के जैनिया सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गईं। पार्टी से निकाले जाने से आहत बेनजीर ने कहा कि मुझे अपनी सफाई देने के लिए भी मौका नहीं दिया गया। TOI से बातचीत में उन्होंने कहा कि मैं तीन तलाक की पीड़ित हूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस अभियान में हमेशा खड़ी रही, लेकिन मेरी पार्टी ने मुझे सफाई का मौका दिए बिना ही तलाक दे दिया।

मीडिया से बात करते हुए बेनजीर अरफां ने कहा कि जो सस्पेंसन लेटर उन्हें मिला है उसमें लिखा गया है, ‘किसी दूसरी संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम जो रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन के लिए था उसमें आपने बिना पार्टी की इजाजत से हिस्सा लिया। ऐसा करना पार्टी के नियमों को तोड़ना है, जिस कारण आपको तत्काल प्रभाव से पार्टी से बर्खास्त किया जाता है।’

क्या है रोहिंग्या विवाद

रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है। 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है।

रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं। ताजा मामला 25 अगस्त को हुआ, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस वालों पर हमला कर दिया। इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात और भी खराब हो गए।