लोकसभा के चुनाव केंद्र सरकार के कामकाज के परिणामों की समीक्षा होते हैं. जिसे भी लगता है कि केंद्र सरकार अच्छा काम कर रही है, वो सरकार को वोट करता है और जो असंतुष्ट होते हैं वो सरकार के विरोध में मतदान करता है.
2014 में मोदी की शानदार जीत के बाद देश में जितने लोकसभा के उपचुनाव हुए, एकाध को छोड़कर अधिकांश सीटों पर बीजेपी को पराजय का सामना करना पड़ा, जो यह बताने के लिए काफी है कि देश की जनता नरेंद्र मोदी से काफी गुस्से में है.
2014 से अब तक बीजेपी की दर्जन भर सीटें कम हो चुकी है. इससे साफ है कि देश की जनता उन्हें अगला कार्यकाल देने के मूड में नहीं है.
मध्य प्रदेश से शुरु हुई थी हार की कहानी
मोदी सरकार बनने के बाद सबसे पहला उपचुनाव मध्य प्रदेश की रतलाम झाबुआ सीट पर हुआ था. यहां से बीजेपी सांसद दिलीप सिंह भूरिया की मौत हो गई थी.
उपचुनाव हुए तो सहानुभूति लहर के बावजूद कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया चुनाव जीत गए. पंजाब में भी हालत ऐसी ही थी. गुरदासपुर से बीजेपी सांसद विनोद खन्ना का निधन हुआ और जब उपचुनाव हुए तो कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने भारी मतों से जीत हासिल की.
राजस्थान की दो सीटों पर शर्मनाक हार
2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान ऐसा प्रदेश था, जहां से कांग्रेस को शून्य सीटें हासिल हुई थी. यहां की अलवर और अजमेर सीट पर जब किन्हीं कारणवश चुनाव हुए तो दोनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की जबकि 2014 में बीजेपी ने इन सीटों पर 03 और 3.5 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी.
यूपी की हार ने दिया बड़ा संदेश
उत्तर प्रदेश में तीन सीटों पर उपचुनाव हुए. इनमें योगी आदित्यनाथ की परंपरागत गोरखपुर, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर और कैराना रही. इन तीनों सीटों पर बीजेपी की शर्मनाक हार हो गई.
तीनों ही सीटों पर विपक्षी दलों ने कब्जा जमा लिया. वहीं महाराष्ट्र की भंडारा गोंदिया सीट भी भाजपा के कब्जे से कांग्रेस की गोद में चली गई.
भाजपा को सबसे हालिया झटका कर्नाटक में लगा जहां उसे अपनी पुरानी सीट बेल्लारी पर लाखों वोटों के अंतर से कांग्रेस के हाथों पराजित होना पड़ गया.