आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि पूरे देश में अभी जो राजनीतिक माहौल देखने को मिल रहा है, उसके मुताबिक बीजेपी भारी सत्ता विरोधी रुझानों का सामना कर रही है. हम आपको बता दें कि बीजेपी को चारों ओर से चुनौतियां मिल रही है.
एक तरफ किसान वर्ग और ग्रामीण इलाका भाजपा के विरुद्ध होता जा रहा है तो उधर युवा वर्ग नौकरियां नहीं मिलने से परेशान है.
सत्ता पाने के लिए बिहार फतह जरुरी
देश के बड़े प्रदेशों में से एक है बिहार. यहां लोकसभा की 40 सीटें हैं जिनमें से 33 सीटों पर एनडीए का कब्जा है. फिलहाल बिहार के राजनैतिक हालात बदल चुके हैं.
कल तक नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ रही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी अब कांग्रेस और राजद के साथ आकर खड़ी हो गई है. इस पार्टी के पास बिहार के 07 प्रतिशत कुशवाहा समाज का मजबूत वोट बैंक मौजूद है.
न्यूज नेशनल और आईबीपीएस का पोल आया सामने
देश के प्रतिष्ठित मीडिया समूह न्यूज नेशनल और सर्वे एजेंसी आईबीपीएस ने बिहार की सभी 40 लोकसभा क्षेत्रों के अलग अलग इलाकों में जाकर सर्वे किया.
इसमें ग्रामीण, शहरी और अर्ध शहरी तीनों इलाकों के युवाओं, छात्रों, महिलाओं, बुजुर्गों, किसान और व्यापारियों से अलग अलग राय जानी गई.
इसमें से जो एक बात निकल कर सामने आई वो यह कि बिहार में एनडीए को डबल एंटी इंकंबैंसी यानी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. एक तो केंद्र सरकार के खिलाफ और दूसरी राज्य सरकार के खिलाफ.
मोदी से ज्यादा नीतीश से नाराजगी
इस सर्वे की सबसे खास बात यह रही कि पीएम नरेंद्र मोदी से ज्यादा बिहारी समाज सीएम नीतीश कुमार से नाराज है. सवर्ण एक बार फिर से कांग्रेस के साथ लौटते हुए नजर आ रहे हैं.
एक समय में सवर्णों को राजद से परेशानी थी लेकिन अब ब्राह्मण और राजपूत युवा भी तेजस्वी यादव को उभरता हुआ नेता मान रहे हैं. कांग्रेस समर्थक उंची जाति के युवाओं को राजद को वोट देने में कोई परेशानी नहीं है.
ऐसे आ सकते हैं चुनावी नतीजे
बिहार में राजद के पास अपना परंपरागत 30 फीसदी के करीब वोट है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नाम पर 08 फीसदी वोट मिलने की संभावना है.
वहीं उपेंद्र कुशवाहा की वजह से 07 फीसदी कुशवाहा वोट, सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की वजह से 03 फीसदी और जीतन राम मांझी के नाम पर 1.5 प्रतिशत मुसहर वोटरों का वोट महागठबंधन के पाले में आ सकता है. ये टोटल वोट 50 फीसदी के करीब पहुंच रहा है.
सीटों के हिसाब से नतीजे
अगर इन सामाजिक समीकरणों का वोट पोलिंग बूथ तक पहुंच जाता है तो राजद, कांग्रेस, रालोसपा और हम का यह महागठबंधन आसानी से 35 सीटों पर कब्जा कर सकता है.
सत्ताधारी जदयू का हाल यह भी हो सकता है कि वह सिर्फ नालंदा लोकसभा सीट तक सिमट कर रह जाए.
भाजपा तो बिहार में इस कदर डरी हुई है कि अपनी जीती हुई 22 सीटों की बजाय महज 17 सीटों पर लड़ने को तैयार हो गई है और इन 17 में से भी 03 पर नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवार ही भाजपा के सिंबल पर मैदान में होंगें.