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बीजेपी को लगा एक और तगड़ा झटका, अरविंद केजरीवाल समेत यह दो राज्य देंगे राहुल गांधी का साथ

जैसा कि आप सब जानते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अभी से महागठबंधन की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं. भले ही यह बात किसी भी मीडियाकर्मी को न मालूम हो लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद से ही कई दलों के बीच बातचीत और मोलभाव का सिलसिला शुरु हो चुका है.

इसी बीच सनसनी मचाती हुई एक खबर आई है कि दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात पटरी पर लौट रही है.

1. बीजेपी के लिए चिंता का सबब

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अगर लोकसभा चुनाव 2019 के लिए चुनावी समझौता होता है तो इसका असर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की 31 लोकसभा सीटों पर जबर्दस्त असर पड़ेगा.

यह भी संभव है कि इन 31 सीटों पर भाजपा और उनके सहयोगी शून्य पर सिमट कर रह जाए. इसलिए भाजपा और संघ परिवार के रणनीतिकारों की निगाह आप और कांग्रेस के गठबंधन की ओर लगी हुई है.

2. भारत बंद के दौरान हुई नजदीकी

पिछले 10 सितंबर को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर कांग्रेस की ओर से भारत बंद बुलाया गया था जिसमें कई दलों ने हिस्सा लिया था.

इस दौरान देश की राजधानी दिल्ली में एक सभा भी बुलाई गई जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी उपस्थित थें. वहां आम आदमी पार्टी की ओर से पार्टी के राज्यसभा सांसद और केजरीवाल के खासमखास संजय सिंह मौजूद थें. वहीं लोगों ने कयासबाजी शुरु कर दी थी कि आने वाले चुनाव में कांग्रेस और आप नजदीक आ सकते हैं.

3. टीडीपी भी आई साथ

कांग्रेस के लिए सुखद आश्चर्य की बात यह रही कि लगभग 22 सांसदों वाली टीडीपी ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है.

कांग्रेस के साथ तेलंगाना विधानसभा चुनाव में टीडीपी का गठबंधन फाइनल हो चुका है. इससे पहले किसी को यह यकीन नहीं था कि चंद्रबाबू नायडु कांग्रेस के साथ जा सकते हैं. अब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भाजपा का खाता खुलना मुश्किल हीं नहीं नामुमकीन भी है.

4. इन दलों का साथ आना तय

फिलहाल कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन में राजद, एनसीपी, डीएमके, नेशनल कॉफ्रेंस, टीडीपी, टीएमसी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा जैसे दलों का साथ आना तय हो चुका है.

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ बातचीत प्रगति पर है. सीटों की संख्या को लेकर अभी कुछ भी फाइनल नहीं है.

निष्कर्ष:

समान विचारधारा वाले दलों का देश के व्यापक हित में एक मंच पर आना आवश्यक है अन्यथा आने वाली कई पीढ़ियां भी उन्हें माफ नहीं करेगी.