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कांग्रेस और राजद पार्टी के ख़ुशी का ठिकाना नहीं तो वहीं एनडीए को लगा बहुत ही तगड़ा झटका

जैसा कि आप सब जानते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव में अभी थोड़ा सा समय बाकी है. लोगों का कहना है कि दिल्ली की राजनीति की राह पटना और लखनऊ से होते हुए गुज़र रही है.

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बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243 सीटें हैं. फिलहाल में इन 40 में से 33 सीटों पर एनडीए का कब्जा है. इनमें भारतीय जनता पार्टी के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और जनता दल यू है. अभी बिहार की राजनीति में कई तरह के उलटफेर होने की संभावना जताई जा रही है.

1. क्या कहते हैं बिहार के आंकड़े

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पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में भाजपा को 22, लोजपा को 06, रालोसपा को 03 सीटें हासिल हुई थी. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू अकेले लड़ी थी जिन्हें मात्र 02 सीटें हीं नसीब हो सकी थी.

उसके पूर्व जदयू के पास 20 लोकसभा की सीटें हुआ करती थी. 2009 में कांग्रेस को बिहार में 02 सीटें मिली थी, 2014 में भी 02 हीं मिली जबकि राजद को भी सिर्फ 04 सीटों पर जीत मिली जबकि एक सीट एनसीपी के खाते में चली गई.

2. दोनों गठबंधनों के पास नए साथी

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बिहार में जहां एनडीए को नीतीश कुमार के रुप में नया साथी मिल गया है तो वहीं यूपीए खेमे में पूर्व सीएम और दलित नेता जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोरचा शामिल हो गई है.

इसके साथ हीं नीतीश कुमार की पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने भी जदयू के भाजपा के साथ गठबंधन से नाराज होकर नया लोकतांत्रिक जनता दल बना डाला है. वह भी यूपीए के हीं साथ है.

निष्कर्ष निकालें तो एनडीए के पास जहां भाजपा, जदयू, लोजपा और रालोसपा जैसी पार्टियां है तो वहीं यूपीए के पास कांग्रेस, राजद, हम और लोकतांत्रिक जनता दल है. रही बात एनसीपी की तो उसके एकमेव नेता तारिक अनवर कांग्रेसी खेमे में जाने वाले हैं.

3. यूपीए बना रही नया खाका

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यूपीए अपने साथ बहुजन समाज पार्टी और वामपंथी दलों को अपने साथ लाने में कामयाब होती दिख रही है. बिहार में माले का अपना जनाधार है.

इसके साथ हीं अगर बसपा साथ आती है तो दलित वोटों का बहुतायत हिस्सा यूपीए को मिल सकता है. ऐसे में यूपीए शानदार तरीके से बिहार मे स्वीप कर सकती है. यह गणित अगर जमीन पर उतर गया तो भाजपा और जदयू के लेने के देने पड़ सकते हैं.

4. एनडीए टूट से परेशान

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वहीं एनडीए की परेशानी यह है कि नीतीश कुमार के खिलाफ में जहां जबर्दस्त सत्ता विरोधी रुझान देखने को मिल रहा है तो उसके एक घटक दल रालोसपा के नेता किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार को नेता मानने को तैयार नहीं है.

राजनीतिक जानकार मानते हैं रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा कभी भी एनडीए को लात मार कर यूपीए की शोभा बढ़ा सकते हैं.

निष्कर्ष:

राजनीति संभावनाओं का खेल है. यह कब कौन सा मोहरा किसके खेमे में चल जाए, समझ से परे होता है. आगे आगे देखिए, होता है क्या !

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