नई दिल्ली: जैसा कि आप सब जानते हैं कि यूपी उपचुनाव में गोरखपुर, फूलपुर और बिहार में अररिया लोकसभा सीट पर किरकिरी के बाद बीजेपी मुश्किल में है। हम आपको बता दें कि दूसरी ओर 2019 में विपक्ष को नई ताकत मिल गई है।
यूपी में सपा-बसपा के साथ आने से सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के गढ़ में सेंध लग गई। ऐसे में न केवल कांग्रेस बल्कि सपा, बसपा, आरजेडी से लेकर अन्य क्षेत्रीय दलों को भी मोदी सुनामी से लड़ने की राह दिखती नजर आ रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और इसमें कोई शक नहीं कि 80 सीटों वाली यूपी में बीजेपी को हराना सपा-बसपा से ज्यादा कांग्रेस के लिए जरूरी है। भले ही सपा-बसपा को ज्यादा सीटें मिल जाएं, लेकिन यह भी कांग्रेस के लिए बोनस होगा, क्योंकि यूपी में कांग्रेस के पास ज्यादा बेस नहीं बचा है। ऐसे में उसके पास एक ही विकल्प बचा है। अगर यूपी में 2019 में बीजेपी पटखनी देनी है तो कांग्रेस को खुद हारना होगा। 2019 में यूपी में कांग्रेस को वोट कटुआ नहीं बल्कि वोट जुड़वा बनना होगा।
गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई है। जाहिर है उसे जो भी 15 से 20000 वोट मिले हैं, वो सपा के उम्मीदवार के खाते में जाते तो उनकी जीत का अंतर और ज्यादा हो जाता है। बहरहाल, ये तो उपचुनाव है, लेकिन 2019 में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होगी, इसलिए उसे आम चुनाव से पहले ही सपा-बसपा के साथ मिलकर यूपी में महागठबंधन करना होगा। अगर कांग्रेस सपा-बसपा के साथ मिलकर यूपी में बीजेपी को चुनौती देती है और अपने उम्मीदवार नहीं उतारती है और अपना वोट सपा-बसपा के प्रत्याशियों को ट्रांसफर करती है तो बीजेपी के लिए यूपी से बच निकलना बड़ा ही मुश्किल हो जाएगा।
कुल मिलाकर 2019 में कांग्रेस को पुल का काम करना होगा। कांग्रेस को देखना होगा कि जहां साथी दलों के उम्मीदवार मजबूत हैं, वहां उसे अपना कैंडिडेट नहीं उतारना होगा। गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में हालांकि, कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। इसका नुकसान सपा को हुआ। लेकिन 2019 के लिए कांग्रेस को अभी से इसी रणनीति पर काम करना होगा।