“हिरन चले नौ हाथ, शिकारी बारह हाथ” यह कहावत तो आपने ज़रूर सुनी होगी. उत्तर प्रदेश की पुलिस के साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है. जबसे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आई है तबसे यहां के पुलिस वाले ऐंटी रोमियो स्क्वाड का इंतज़ाम करने में लग गये हैं.
मगर समस्या ये है कि बिना नया कानून बने. किसी गाइडलाइन के सिर्फ मोटिवेशन के ऊपर काम करना कभी-कभी बहुतै भारी पड़ जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ है देवरिया और गाज़ियाबाद के पुलिसवालों के साथ.
देवरिया में हनुमान चौराहे पर किसी काम से साथ गए भाई-बहन को पुलिसवालों ने पकड़ लिया. दोनों ने अपने भाई-बहन होने की बात बताई मगर पुलिस को यकीन नहीं हुआ. दोनों को कोतवाली में बिठा लिया गया. घरवालों के पुलिस स्टेशन पहुंचकर हंगामा करने पर पुलिस ने माफी मांगी.
इस तरह की और भी घटनाएं राज्य की अलग-अलग जगहों पर हो रही हैं. ऐंटी रोमियो दल बनाने के पीछे का कारण छेड़-छाड़ रोकना और महिलाओं की सुरक्षा करना रहा होगा. मगर जिस अंदाज़ में ज़्यादातर पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं, उसमें कानून व्यवस्था सुधारने से ज़्यादा एक तरह का डर पैदा करने की कवायद दिख रही है. ऊपर से स्त्री-पुरुष के साथ घूमने, पार्क में बैठने को अपराध की तरह दिखाया जा रहा है. क्या ये संविधान में दिए गए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है. जिस देश में रेप विक्टिम्स के साथ भेदभाव के चलन के चलते उनकी पहचान छिपाकर रखी जाती है वहां इस तरह से बिना किसी कारण के लड़कियों को ज़लील करना, उन्हें पुलिस थाने ले जाना उनको किस तरह से सुरक्षा देगा?
गाज़ियाबाद का मामला और गंभीर है. वहां नवयुग मार्केट के पास दो लड़कों और एक लड़की को पुलिस ने डीटेन किया. किसी भी महिला को गिरफ्तार करने के लिए महिला पुलिसकर्मी का होना आवश्यक है. मगर इन तीनों को गिरफ्तार करके कोतवाली ले जाने वाले पुलिसकर्मियों में कोई भी महिला नहीं थी. इसकी जानकारी मिलने पर दोषी पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया है. इलाके के सीओ राजेश कुमार सिंह ने बताया कि ये पुलिसवाले ऐंटी रोमियो स्क्वाड का हिस्सा भी नहीं थे. मतलब जो जिम्मेदारी नहीं दी गई वो भी करने को तैयार हैं, टारगेट और इन्क्रीमेंट वाला महीना चल रहा है न.