जैसा कि आप सब जानते हैं कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को एक नया भारत बनाने का सपना दिखाया था यानी ‘न्यू इंडिया’ का सपना दिखाया था. हम आपको बता दें कि उन्होनें देश में नए रोज़गार लाने का वादा भी किया था, लेकिन तमाम रिपोर्ट्स की माने तो वो ऐसा करने में असफल रहे हैं.
CMIE की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जून महीने में देश की बेरोज़गारी दर 7.9 प्रतिशत थी. यही दर जून 2018 में 5.8 थी. यानी की एक साल में बेरोज़गारी दर में 2.1 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि एक महीने पहले, यानी कि मई में यही दर 7.2 प्रतिशत थी.
आपको बता दें कि 23 मई को लोकसभा चुनाव के परिणाम आए. 31 मई को एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने शपथ ली. उन्होनें चुनाव के समय युवाओं को रोज़गार देने का वडा भ किया था.
लेकिन चुनाव परिणाम आने के अगले ही महीने, यानी कि जून में बेरोज़गारी दर बढ़ जाती है. CMIE रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 33 महीनों में (सितम्बर 2016) से जून महीने में ही सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी दर रिकॉर्ड की गई है.
यही नहीं, 9 जून को तो बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत थी. रिपोर्ट में बताया गया है कि जून में श्रम भागीदारी में बढ़ौतरी हुई थी. लेकिन इन सभी श्रमिकों को बाज़ार में काम नहीं मिल पाया था. देर से मानसून आना भी एक कारण है.
रिपोर्ट में बढ़ती बेरोज़गारी दर को कम करने का तरीका भी सुझाया गया है. अगर देश के बाज़ारों में निवेश की स्थिति की सुधरी तो स्थिति बेहतर हो सकती है. हालाँकि ऐसा होता नहीं दिख रहा है. 2018-19 में निवेश 19 प्रतिशत कम निवेश के प्रस्ताव आए थे. 2019-20 के शुरुआती महीनों में हाल और भी बुरा रहा.
2014 में जब भाजपा ने सरकार बनाई थी, तभी देश में नए रोज़गार लाने की बात कही थी. अब साल 2019 आ चुका है और हालत सुधरते नहीं दिख रहे हैं. सवाल उठता है कि हर चुनाव में नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी जनता को झूठे वादे क्यों करती है? क्या ‘न्यू इंडिया’ के विकास में श्रमिकों के रोज़गार की कोई जगह नहीं है?