हम आपको बता दें कि मीडिल ईस्ट रेलवे के क्लेम ट्रिब्यूनल में यात्रियों की मौत पर मिलने वाले मुआवजे (डेथ क्लेम) से जुड़ा एक फर्जीवाड़ा सामने आया है। हम आपको यह भी बता दें कि सितंबर 2015 से अगस्त 2017 के बीच ट्रेन हादसों का शिकार होने वाले लोगों की मौतों पर मिलने वाले मुआवजे की रकम के साथ किया जाने वाले घोटाला सामने आया है।
इस कदर की जाने वाली पैसों की धांधली का पता उस समय चला जब दिल्ली से कैग (सीएजी) की ऑडिट टीम जांच करने के लिए ट्रिब्यूनल पहुंची। ऑडिट में सामने आया कि दो साल में मुआवजे के संबंध में जितने भी आदेश जारी किए गए हैं, उनमें ज्यादातर मामलों में भुगतान करने का आदेश मिलने के बाद जांच रिपोर्ट भेजी जाती थी। यहां होने वाली गड़बड़ी के हालात ऐसे थे कि अगर कोई घटना बेगूसराय की है तो जांच रिपोर्ट बक्सर रेल पुलिस द्वारा भेजी जाती थी।
सौ से अधिक मामलों में दोबारा हुआ क्लेम
रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की तरफ से सितंबर 2013 से लेकर जुलाई 2015 के बीच इन दो सालों में 789 मामलों का निपटारा किया गया। आने वाले सालों में सितंबर 2015 से अगस्त 2017 के बीच में 2564 मामलों का निपटाया गया।
इस तरह से करीब 151 करोड़ का भुगतान कर लिया गया। 100 से ज्यादा मामलों में तो दोबारा क्लेम पर भुगतान किया गया। ऑडिट टीम ने जब इस पर सवाल उठाए तो आनन-फानन 80 लोगों से चार करोड़ रुपये की राशि वसूली गई।
ऐसे खेला जाता रहा धांधली का खेल
कोई यात्री जब ट्रेन से गिरकर या कटकर मरता है तो सबसे पहले स्टेशन प्रबंधक की ओर से जीआरपी को मेमो दिया जाता है। इसके बाद जीआरपी शव पोस्टमार्टम के लिए भेजती है। ज्यादातर मामलों में जीआरपी जांच रिपोर्ट फौरन सौंप दी जाती है। मौत होने के 60 दिनों के बाद रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में क्लेम के लिए मृतक के परिजन की ओर से आवेदन भेजा जाता है। मृतक के पहचान पत्र के साथ ही परिजन को बैंक खाता नंबर देना होता है।
साल 2015-17 के बीच बढ़ गई मामलों की संख्या
इस बीच सभी जरुरी कागजों की जांच की जाती है। ट्रिब्यूनल की ओर से जांच के लिए आरपीएफ को कहा जाता है। आरपीएफ की ओर जांच रिपोर्ट भेजने के बाद ही मुआवजा दिया जाता है। सितंबर 2015 से अगस्त 2017 के दौरान ऐसे अधिकतर मामलों में आरपीएफ की ओर से जांच रिपोर्ट भेजने से पहले ही मुआवजा देने का आदेश ट्रिब्यूनल की ओर से दे दिया गया है।
ज्यादातर मामलों में आरपीएफ की ओर से ट्रेन से कटने की पुष्टि नहीं किए जाने के बाद भी भुगतान का आदेश जारी किया गया है। कई मामलों में सामने आया कि आवेदक आवेदन देते समय बैंक खाता क्षेत्र का देते हैं, लेकिन ट्रिब्यूनल से मुआवजे का आदेश पारित होने के बाद पार्टी के अधिवक्ता की पहचान पर एक ही बैंक में दोबारा खाता खोला जाता है।
उसी खाते में भुगतान किया जाता है। भुगतान होने के तीन दिन में ही पूरा पैसा निकाल लिया जाता है। कुछ दिन बाद फिर उसी मामले में दूसरे को आवेदक बना फिर से मुआवजा उसी बैंक से ले लिया जाता है। करीब सौ से ज्यादा मामलों में ऐसा किया जा चुका है।
सिर्फ पांच बैंक शाखाओं में भुगतान
गौर करने वाली बात तो यह है कि पिछले दो साल के दौरान इन सभी मामलों में केवल पांच ही बैंक की शाखाओं में खाता खुलवाकर भुगतान किया गया है। साथ ही पांच ही अधिवक्ता इन सभी मामलों में पैरवी करने वाले हैं। नियम के मुताबिक हर एक दिन न्यायालय की सुनवाई के दौरान कंप्यूटर में केस के हिसाब से एंट्री की जाती है।
रेलवे में सफर के दौरान अपनी जान गवां देने वाले यात्रियों को दिया जाने वाले मुआवजे की इस धांधली के सामने आने से सभी के होश उड़ गए हैं। यह सोचकर भी हैरानी होती है कि जहां अपने किसी करीबी को खो देने वाले परिवार के लिए यह दुखद समय होता है वहीं रेलवे के कर्मचारियों द्वारा यह काला धंधा चलाया जा रहा है। जरुरत है तो इस पर जल्द से जल्द एक सख्त कदम उठाने की।