हम आपको बता दें कि आम आदमी की परेशानियां कम होती हुई नहीं दिखाई दे रही हैं. आम आदमी एक परेशानी से संघर्ष करता हुआ किसी तरह से छुटकारा पाता है तो दूसरी परेशानी उसको घेर लेती है.
भारत में आजकल सनकी बादशाह का शासन हो गया है. रोजाना नई नई सनक से आम जनता को दिक्कत पहुंचाने के लिए नए नए पैंतरे आजमाता रहता है.
सनकी बादशाह के नोटबंदी जैसे गैरजरुरी और तालिबानी फैसले का दंश भुगत चुका है. खुद को काबिल दी ग्रेट साबित करने के लिए टीवी पर प्रवचन बांच दिए कि कल से 500 और 1000 के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगें.
लोगों ने पूछा ऐसा क्यों भाई तो जवाब मिला कि इससे काला धन वापस आएगा. देश से आतंकवाद और नक्सलवाद खत्म हो जाएगा. ऐसा कुछ मिला नहीं, देश की अर्थव्यवस्था को ऐसी करारी चोट पहुंची कि उससे आज तक निजात नहीं मिल सका है.
न्यूनतम बैलेंस न होने पर कट जा रहे रुपये
बैंकों में खाता संचालन के लिए मिनिमम बैलेंस रखने की जरुरत होती है.
देश की करीब 21 सरकारी और 03 निजी बैंकों ने इस नियम का घनघोर फायदा उठाते हुए अपने एनपीए की रकम पर काबू पाने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के 5000 करोड़ रुपये काट लिए. लोगों को पता भी नहीं चला कि कब उनके खाते से रकम उड़ गई.
कुछ बैंकों ने हद कर दी. खाते में न्यूनतम राशि नहीं रहने पर 100 प्रतिशत तक का जुर्माना लगा दिया. आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि हर खाताधारक को चाहिए कि न्यूनतम बैलेंस के सिद्धांत का पालन करें लेकिन बैंक जिस तरह से जुर्माना लगा रहे हैं, वह भी अनुचित है.
ऐसे होता है न्यूनतम अकाउंट बैलेंस का हिसाब किताब
हर महीने की आखिरी तारीख को या यूं कहें तो क्लोजिंग डेट को हर खाते का अपडेट निकाला जाता है.
इसमें मिनिमम बैलेंस का पता लगाने के लिए हर दिन के अंतिम में खाते में मौजूद बैलेंस को महीने के कुल दिनों से भाग दे दिया जाता है.
अलग अलग बैंकों का मिनिमम अकाउंट सिस्टम अलग अलग होता है.
यह शहरी इलाके पर भी निर्भर करता है. शहरी इलाकों के लिए मिनिमम बैलेंस अलग होता है, ग्रामीण इलाकों के लिए अलग और अर्धशहरी इलाकों के लिए अलग.
निष्कर्ष:
सरकार की कोई भी योजना जनता को राहत पहुंचाने की बजाय उन्हें परेशान करने में सहायक सिद्ध हो रही है. सरकार को नियम कानून बनाने चाहिए लेकिन उसमें मानवतावादी दृष्टिकोण भी अपनाना चाहिए. तुगलकी फरमान से आज तक किसी को कोई फायदा नहीं हुआ है.