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जानिये उन मुसलमान वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने ऐसी-ऐसी चीजें ईजाद की थीं कि आप सोच भी नहीं सकते

तो चलिए अब बात करते हैं कि मुसलमान वैज्ञानिकों के बारे में। मुसलमान वैज्ञानिकों ने बहुत सी ऐसी चीजें ईजाद की थीं जिनके बारे में न तो हमारे बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाता है और न ही हमें इन मुसलमान वैज्ञानिकों के बारे में मालूम है। आपको बता दें कि मुसलमानों के लिए ज्ञान का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है।

अतीत में मुसलमानों ने इसी आयत करीमा का पालन करते हुए वो स्थान प्राप्त कर लिया था जिसके बारे में आज कोई विचार नही कर सकता है मुसलमान ज्ञान के हर क्षेत्र में आगे थे चाहे उसका सम्बन्ध धार्मिक ज्ञान से हो या आधुनिक ज्ञान से, धार्मिक ज्ञान में वो मुफक्किर-ए-इस्लाम और वलीउल्लाह थे तो आधुनिक ज्ञान में उनकी गणना दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों में होती थी।

यही कारण था कि अल्लाह ने धार्मिक और आधुनिक ज्ञान के कारण उन्हें बुलंदियों पर बिठा दिया था मुसलमानों ने विज्ञान के हर क्षेत्र में अपनी खिदमतों को अंजाम दिया है और विज्ञान को मजबूती प्रदान की है खुद कुरआन में 1000 आयत ऐसी है जिन का सम्बन्ध वैज्ञानिक संस्था से है।

विज्ञान का कोई क्षेत्र ऐसा नही जिसमें मुसलमानों ने अपनी खिदमतों को अंजाम न दिया हो अगर केमिस्ट्री का इतिहास देखें तो पता चलता है कि हम केमिस्ट थे गणित का इतिहास देखो तो पता चलता है कि हम गणितज्ञ थे।

लेकिन हमें जीव विज्ञान में उच्च स्थान प्राप्त था लेकिन इन सबकी वजह इस्लाम से कुराआन से अल्लाह से जुड़ा होना था कोई साइंसदान हाफिज था तो कोई किसी मदरसे का कुल शोधकर्ता तब मुसलमान कम संख्या में थे़ लेकिन ज्ञान के हुनर-ओ-फन में हमारा कोई शानी नही था।

मुसलमान अतीत में एक सफल इंजिनियर भी रहे एक चिकित्सक भी रहे एक उच्च सर्जन भी रहे हैं कभी इब्न-उल-हैशम बन कर प्रतिश्रवण के सिंहासन पर काबिज हो गये तो कभी जाबिर बिन हियान के रूप में रसायन विज्ञान का बाबा आदम बन कर सामने आये।

अल तूसी

अल तूसी इनका पूरा नाम अल अल्लामा अबू जाफर मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन अल तूसी है ये सातवीं सदी हिजरी के शुरू में तूस में पैदा हुए इनकी गणना इस्लाम धर्म के बड़े साइंसदानो में होती है इन्होने बहुत सारी किताबे लिखीं है जिनमे सब से अहम “शक्ल उल किताअ” है।

ये पहली किताब थी जिसने त्रिकोणमिति को खगोलशास्त्र से अलग किया अल तूसी ने अपनी रसदगाह में खगोलीय टेबल बनाया जिस से यूरोप ने भरपूर फायदा उठाया अल तूसी ने बहुत से खगोलीय समस्याओ को हल किया और बत्लूम्स से ज्यादा आसान खगोलीय मानचित्र बनाया।

उन्ही की मेहनत और परिश्रम ने कूपर निकस को सूरज को सौर मण्डल का केंद्र करार देने में मदद दी इससे पहले पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता था इन्होने आज के आधुनिक खगोल का मार्ग प्रशस्त किया।

“तूसी इस्लाम के सब से महान वैज्ञानिक और सबसे बड़े गणितज्ञ थे इसी मशहूर वैज्ञानिक ने त्रिकोणमिति की बुनियाद डाली और उससे सम्बंधित कई कारण भी बतलाये, खगोल विज्ञान की पुस्तकों में “अलतजकिरा अलनासरिया ” जिसे तजकिरा फी इल्म नसख” के नाम से भी जाना जात है खगोल शास्त्र की एक मशहूर किताब है जिसमें इन्होने ब्रह्मांड प्रणाली में हरकत की महत्वता ,चांद का परिसंचरण और उसका हिसाब ,धरती पर खगोलीय प्रभाव ,कोह,रेगिस्तान ,समुन्द्र,हवाएं और सौर प्रणाली के सभी विवरण स्पष्ट कर दिए ,तूसी ने सूर्य और चंद्रमा की दूरी को भी स्पष्ट किया और ये भी बताया कि रात और दिन कैसे होते हैं।

मुस्लिम रसायन शास्त्री – जाबिर बिन हियान

जाबिर बिन हियान जिन्हें इतिहास का पहला रसायनशास्त्री कहा जाता है उसे पश्चिमी देश में गेबर के नाम से जाना जाता है ,इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है ,इनका जन्म 733 ईस्वी में तूस में हुई थी ,जाबिर बिन हियान ने ही एसिड की खोज की इन्होने एक ऐसा एसिड भी बनाया जिससे सोने को भी पिघलाना मुमकिन था जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति ,पशु और ,खनिज में विभाजित किया।

इब्न अल हैशम

इब्न अल हैशम का पूरा नाम अबू अली अल हसन बिन अल हैशम है ये ईराक के एतिहासिक शहर बसरा में 965 ई में पैदा हुए ,इन्हें भौतिक विज्ञान ,गणित,इंजीनियरिंग और खगोल विज्ञान में महारत हासिल थी ,इब्न अल हैशम अपने दौर में नील नदी के किनारे बाँध बनाने चाहते थे ताकि मिश्र के लोगों को साल भर पानी मिल सके लेकिन अपर्याप्त संसाधन के कारण उन्हें इस योजना को छोड़ना पड़ा ,लेकिन बाद में उन्हीं की इस योजना पर उसी जगह एक बाँध बना जिसे आज असवान बाँध के नाम से जाना जाता है।

अतीत में माना जाता था कि आंख से प्रकाश निकल कर वस्तुओं पर पड़ता है जिससे वह वस्तु हमें दिखाई देती है लेकिन इब्न अल हैशम ने अफलातून और कई वैज्ञानिकों के इस दावे को गलत शाबित कर दिया और बताया कि जब प्रकाश हमारी आंख में प्रवेश करता है.

तब हमे दिखाई देता है इस बात को शाबित करने के लिए इब्न अल हैशम को गणित का सहारा लेना पड़ा ,इब्न अल हैशम ने प्रकाश के प्रतिबिम्ब और लचक की प्रकिया और किरण के निरक्षण से कहा कि जमीन की अन्तरिक्ष की उंचाई एक सौ किलोमीटर है.

इनकी किताब “किताब अल मनाजिर” प्रतिश्रवण के क्षेत्र में एक उच्च स्थान रखती है,उनकी प्रकाश के बारे में की गयी खोजें आधुनिक विज्ञान का आधार बनी ,इब्न अल हैशम ने आँख पर एक सम्पूर्ण रिसर्च की और आँख के हर हिस्से को पूरे विवरण के साथ अभिव्यक्ति किया।

इब्न अल हैशम ने जिस काम को अंजाम दिया उसी के आधार पर बाद में गैलीलियो, कापरनिकस और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने काम किया, इब्न अल हैशम से प्रभावित होकर गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार किया -इब्न अल हैशम की वैज्ञानिक सेवाओं ने पिछले प्रमुख वज्ञानिकों के चिराग बुझा दिए इन्होने इतिहास में पहली बार लेंस की आवर्धक पावर की खोज की ,इब्न अल हैशम ने ही यूनानी दृष्टि सिद्धांत को अस्वीकार करके दुनिया को आधुनिक दृष्टि दृष्टिकोण से परिचित कराया जो चीजें इब्न अल हैशम ने खोजी पश्चिमी देशों ने हमेशा उन पर पर्दा डालने की कोशिस की।

हासिल अलकिंदी

चिकित्सा और खगोल विज्ञान में महारत हासिल अलकिंदी ने ही इस्लामी दुनिया को हकीम अरस्तू के ख्यालों से परिचित कराया और गणित,चिकित्सा विज्ञान,दर्शन,और भूगोल पर 241 उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी जिनमें उनकी पुस्तक “बैत-उल-हिक्मा को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है।

अल-बैरूनी

अबू रेहान अल बैरूनी का पूरा नाम अबू रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल बैरूनी है ये 9 सितंम्बर 973 ई को ख्वारिज्म के एक गाँव बैरून में पैदा हुए, ये बहुत बड़े शोधकर्ता और वैज्ञानिक थे। बैरूनी ने ही सब से पहले पृथ्वी को मापा था ,अल बैरूनी ने आज से 1000 साल पहले महमूद गजनवी के दौर में मौजूदा पाकिस्तान आने वाले उत्तरी पंजाब के शहर पिंड दादन खान से 22 किलोमीटर दूर स्थित नंदना में रुके ,इसी प्रवास के दौरान इन्होने पृथ्वी की त्रिज्या को ज्ञात किया जो आज भी सिर्फ एक प्रतिशत के कम अंतर के साथ दुरुस्त है।

सभी वैज्ञानिक इस बात से हैरत में हैं कि अल – बैरूनी ने आज से 1000 साल पहले जमीन की माप इतनी सटीकता के साथ कैसे कर ली ? अल-बैरूनी ने ही बताया कि पृथ्वी अपनी अक्ष (axis) पर घूम रही है और ये भी स्पष्ट किया फव्वारों का पानी नीचे से ऊपर कैसे जाता है इब्न सीना – इब्न सीना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना है।

इनकी गणना इस्लाम के प्रमुख डाक्टर और दर्शिनिकों में होती है पश्चिम में इन्हें अवेसेन्ना के नाम से जाना जाता है ये इस्लाम के बड़े विचारकों में से थे, इब्न सीना ने 10 साल की उम्र में ही कुरआन हिफ्ज कर लिया था।

अबू अली सीना की वैज्ञानिक सेवाओं को देखते हुए यूरोप में उनके नाम से डाक टिकट जारी किये गये हैं आज हमें स्कूल और कॉलेजों में बताया जाता है कि “मुसलमानों ने जब कुस्तुन्तुनिया को अपने कब्जे में लिया तो वहां साइंस के और ज्ञान विज्ञान के तमाम स्त्रोत मौजूद थे लेकिन मुसलमानों के लिए इन सब की कोई अहमियत न थी इसलिए मुसलमानों ने उनको तबाह बर्बाद कर डाला”

इस झूठे इतिहास को पढ़ा कर भारत और दुनिया के तमाम मुल्क के शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थीयों कि मानसिकता को बदला जाता है और हकीकत को पैरों तले कुचल दिया जाता है और मुसलमान भी इसी झूठे इतिहास को पढ़ता रहता है क्यूंकि उसे असलियत का पता नही होता उसे ये इल्म नही होता कि हमने बहर-ए-जुल्मात में घोड़े दौडाएं हैं हमने समन्दरों के सीने चाक किये हैं हम ही ने परिंदों की तरह इंसान को परवाज़ करना सिखाया है हम ही ने साइंस को महफूज़ किया है|