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जानिये कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया जाने वाला 10% आरक्षण भी है एक जुमला


जैसा कि आप सब जानते हैं कि लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सवर्ण याद आ गए हैं. हम आपको बता दें कि अब सवर्णों को आरक्षण देने का दांव भाजपा ने चल दिया है.

हालांकि सवर्ण बुद्धिजीवी होते हैं. इन्हें आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता. सवर्ण समाज जानता है कि आरक्षण देने के पीछे बहुत सारे चरण होते हैं ये इतना आसान नहीं होता.

भारतीय संविधान के अनुसार 50 प्रतिशत से आरक्षण नहीं दिया जा सकता. पहले से 49.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है, फिर ये 10 प्रतिशत आरक्षण नरेंद्र मोदी कहां से लाएंगे, इसका खुलासा तो वही कर सकते हैं.

जुमलों के सिवाय कुछ भी नहीं

आपको भारतीय जनता के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी का वो इंटरव्यू जरुर याद होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि चुनाव में बहुत सारी बातें कह दी जाती है, जो कभी पूरी हो ही नहीं सकती. जनता उन पर यकीन कर हमें वोट दे देती है तो इसमें हमारा क्या कसूर.

वहीं अमित शाह का कहा जुमला शब्द भी आपको याद होगा. ऐसा ही एक और जुमला और चुनाव में बहुत सारी बातों में से एक की घोषणा नरेंद्र मोदी की सरकार ने कर दी है. सवर्णों को लॉलीपॉप थमाते हुए उनके लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है.

कभी नहीं मिल पाएगा आरक्षण

नरेंद्र मोदी और अमित शाह विशुद्ध रुप से धूर्त हैं. संविधान में प्रावधान है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.

देश में पहले से 49.5 प्रतिशत आरक्षण है, ये उपर से 10 फीसदी आरक्षण जोड़ दिया जाए तो ये 59.5 प्रतिशत हो जाएगा. ये तो कभी संभव ही नहीं है. पहले से ही एससी को 15 प्रतिशत, एसटी को 7.5 प्रतिशत, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है.

ऐसे ही नहीं मिलता है आरक्षण

किसी भी नए वर्ग को ऐसे ही आरक्षण नहीं मिल सकता. ये कोई जुमलेबाजी का खेल नहीं है. इसके लिए एक अध्ययन कमिटी बनती है. वो जिस जाति या समुदाय को आरक्षण देना होता है उसकी आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन किया जाता है, उसकी रिपोर्ट तैयार होती है.

आयोग अपनी सिफारिशों का चिट्ठा तैयार करता है. उसे सदन के पटल पर रखा जाता है. चर्चा होती है. फिर इसे अमलीजामा पहनाया जाता है. इस प्रक्रिया में कई साल का वक्त बितता है, यहां चुनाव सिर पर है तो सवर्णों को बेवकूफ बनाने के लिए मोदी और शाह ने मिलकर नया पैंतरा चल दिया है.

बताते चलें कि चुनाव के पहले कई सरकारों ने ऐसे ही पब्लिक को बेवकूफ बनाने के लिए आरक्षण की घोषणा कर दी लेकिन चुनाव के बाद कोर्ट ने आरक्षण को रद्द कर दिया. जाट आरक्षण, गुर्जर आरक्षण, मीणा आरक्षण और मुस्लिम आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने इसी 50 प्रतिशत वाले नियम के आधार पर रद्द कर दिया था.