नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने ओवर टाइम अलाउंस को ख़त्म कर दिया है और अब सिर्फ 55 अलाउंस ही बचे हैं. इससे लोगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
कर्मचारी संघों और इनके संयुक्त संगठन एनजेसीए ने भी सरकार के समक्ष मांग रखी कि 100 साल से भी अधिक समय से जो अलाउंस चले आ रहे थे उन्हें एकाएक समाप्त कर दिया गया है. ऐसा नहीं किया जाना चाहिए. संघ ने मांग की कि इनमें से कई अलाउंस को फिर से चालू किया जाए.
वहीं, इनमें सबसे अहम ओवर टाइम अलाउंस को लेकर विवाद है. हाल ही में सांसद जी हरि ने संसद में सरकार से इस संबंध में सवाल पूछा. उन्होंने पूछा कि क्या वर्ष 2012-13 के दौरान सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले ओवरटाइम भत्ते की धनराशि 797 करोड़ रुपये से बढ़कर 1629 करोड़ रुपये हो गई थी और हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है.
इसके अलावा सांसद श्री हरि ने पूछा कि क्या सरकार सरकारी कार्यालयों में ओवरटाइम भत्ता समाप्त करने पर विचार कर रही है, और यदि हां तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है.
संसद में पूछे गए इस प्रश्न के जवाब में सरकार की ओर से वित्तमंत्रालय में राज्य मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल ने जवाब दिया. मेघवाल ने पहले प्रश्न के जवाब में सदन को बताया कि हां, वर्ष 2006-07 में 796.90 करोड़ रुपये के व्यय में संघ राज्य क्षेत्रों के कर्मचारियों के समयोपरि भत्ते (ओवरटाइम) पर किया गया व्यय शामिल नहीं था जबकि वर्ष 2012-13 में 1629.02 करोड़ रुपये के व्यय में संघ राज्य क्षेत्रों के कर्मचारियों के संबंध में किया गया व्यय शामिल.
श्री हरि के दूसरे प्रश्न के जवाब में मेघवाल ने सदन को बताया कि सातवें वेतन आयोग ने ओवरटाइम भत्ता (प्रचालन स्टाफ और सांविधिक प्रावधानों द्वारा शासित औद्योगिक कर्मचारियों को छोड़कर) समाप्त करने की सिफारिश की है और यदि सरकार उन वर्गों के स्टाफ के लिए समयोपरि भत्ता जारी रखने का निर्णय लेती है जिनके लिए इसकी कोई सांविधिक अपेक्षा नहीं है तो ऐसे स्टाफ के लिए समयोपरि भत्ते की दरें उनके वर्तमान स्तरों से 50 प्रतिशत तक बढ़ाई जानी चाहिए. भत्तों के संबंध में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.
यहां तो यह साफ हो गया कि केंद्रीय कर्मचारियों के लिए अभी ओवरटाइम भत्ता जारी रहेगा. फिलहाल सरकार ने सातवें वेतन आयोग की इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है.