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नोटबंदी की वजह से लोग हैं परेशान, रजाई लेकर बैंक के बहार सोये लोग

नई दिल्ली। 500 और 1000 के नोट बंद होने की वजह से आम आदमी बहुत परेशान है। सोमवार को गुरुनानक जयंती की छुट्टी के एक दिन बाद बैंक मंगलवार को फिर खुले। दिल्ली-एनसीआर में बैंकों और एटीएम के बाहर रुपये निकालने वालों की जबरदस्त भीड़ है। कई इलाकों में तो लोग बैंकों में नोट बदलवाने व रुपये निकालने के लिए आज तड़के चार बजे से ही लंबी-लंबी कतारों में लगे हैं, तो कुछ लोग रातभर बैंक के बाहर डटे रहे।

लोग मंगलवार सुबह से लाइनों में खड़े होकर अपना नंबर आने का इंतजार करते दिखाई दिए। वहीं दिल्ली के कुछ इलाकों में लोग रातभर रजाई लेकर बैंक के बाहर सोए, ताकि उनका नंबर पहले आए।

राजधानी दिल्ली के साथ-साथ नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम, गाजियाबाद, सोनीपत में भी आज सुबह से ही बैंकों के बाहर लोग लाइन लगाए खड़े हैं। वहीं, भीड़ देखते हुए प्रशासन ने भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।

दिल्ली के भजनपुरा इलाके में बैंक से पैसे लेने के लिए लाइन में लगी मायादेवी ने बताया कि तीन दिन हो गए हैं। रोज बैंक आते हैं और लौट जाते हैं। आज भी उम्मीद से आए हैं कि पैैसे मिल जाएं।

भजनपुरा में ही लाइन में लगे एक अन्य शख्स रफीक ने बताया कि एक दिन पहले भी आया था, लेकिन वापस लौट गया। आज भी हम उम्मीद से आए हैं। आज पैसा मिला तो ठीक वरना फिर घर लौट जाएंगे और कल फिर आएंगे।

बैंकों में लाइन में लगे लोगों ने अपनी परेशानी भी बयां की। भजनपुरा में बैंक की लाइन में लगे एक शख्स बबलू का कहना है कि मोदी जी कहते हैं कि गरीब आराम से सो रहे हैं और अमीर नींद की दवाइयां ले रहे हैं। वहीं, हालात जुदा हैं।

एटीएम बंद होने से बढ़ी परेशानी, सोमवार को रहा बुरा हाल वहीं सोमवार को बैंक बंदी की खबरें मीडिया में आने के बाद लोग रात 2 बजे ही एटीएम के बाहर लाइन में लगकर पैसे निकालते देखे गए। नतीजन, सुबह तक सभी एटीएम खाली हो गए। सुबह किसी भी एटीएम में पैसा नहीं डाला गया। सिर्फ पीएनबी के एटीएम से पैसे निकल रहे थे। प्रधानमंत्री के फैसले को पलीता लगा रहे विभाग लाइन में लगे अंकुर कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने देश हित में एक बड़ा फैसला लिया है। इससे भ्रष्टाचारियों की रातों की नींद उड़ी होगी। लेकिन फैसले को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है। सोमवार को बैंक बंद थे, एटीएम में पैसे क्यों नहीं डाले गए। यदि आज पैसे रखे जाते तो कम से कम मंगलवार को बैंकों पर आम दिनों की अपेक्षा 30 फीसद कम लोग पहुंचते।