हम आपको बता दें कि पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी के किए धोखाधड़ी के मामले को जहां हर न्यूज और अखबार बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है वहीं इस बारे में मीडिया ने कोई जानकारी नहीं दी कि नीरव मोदी का संबंध अंबानी परिवार से भी है।
लेकिन इंडियन एक्प्रेस की एक खबर ऐसी है जो केवल ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपने अखबार में छापी है। रिपोर्ट के मुताबिक, “पीएम पैनल चीफ रेड फ्लैग्ड इलेक्ट्रिफिकेशन प्लानः रीथिंक” टाइटल से इस यह खबर छापी गई है।
सरकार के इकॉनोमिक एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन की
राय
खबर में बताया गया है कि प्रधानमंत्री के इकॉनोमिक एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने रेलवे बोर्ड को रेलवे का विद्युतीकरण न करने की सलाह दी है और कहा है कि, इस योजना को अमल में लाने से पहले दोबारा विचार करना चाहिए।
रिपोर्ट में बताया गया है कि, पीयूष गोयल जब ऊर्जा मंत्री थे तो उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि रेलवे का 100 फीसदी विद्युतीकरण हो जाना चाहिए, जिससे रेलवे मंत्रालय को 10 हजार करोड़ रुपए सालाना की बचत होगी।
बिबेक देवरॉय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में रेल मंत्रालय को सलाह दी है कि सरकार को डीजल पर ही ट्रेन को चलाते रहना चाहिए क्योंकि अगर इसका विद्युतीकरण किया जाता है इसमें बहुत ही अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी जो रेलवे के पास नहीं है। अपनी बात को तर्क देने के लिए देबरॉय ने कई डेटा की भी जानकारी ली है जिसमें बताया गया है कि चीन, रूस और यूरोप में 33 से 43 फीसदी ट्रेनों का विद्युतीकरण कया गया है। इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय ने रेल मंत्रालय को पुनर्विचार के लिए भेजा है।
जानें पूरी असली कहानी
अब इस खबर पर ही थोड़ा गौर करने की कोशिश करें, पहले भारतीय रेल सरकार के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से डीजल लेता था लेकिन मोदी सरकार आने के बाद रेलवे ने साल 2015 में रिलायंस इंडस्ट्रीज से डीजल खरीदने की डील फाइनल कर ली। इस करार के तहत रेल मंत्रालय हर साल 27000 लाख लीटर डीजल खरीदेगा।
देखा जाए तो अब तक यह सौदा सालाना 17,000 करोड़ से ऊपर का हो गया है। मतलब साफ है कि देबरॉय रेलवे से कह रहे हैं कि आप 10,000 करोड़ रुपए न बचाएं बल्कि 17 हजार करोड़ रूपए अंबानी को देते रहें।
सरकार का जनता के साथ खेला गया खेल
सोचने वाली बात है कि लोगों को पागल और अपना फायदा देखने के लिए कोई भी सरकार इतना ज्यादा कैसे गिर सकती है? प्रधानमंत्री की इस हाई पावर कमिटी के बाकी सदस्य हैं- रतन विट्टल, डॉक्टर सुरजीत भल्ला, डॉक्टर रतिन रॉय और डॉक्टर अशिमा गोयल। ये तमाम अर्थशास्त्री हैं जो समान्यतया निजीकरण के पक्ष में रहे हैं। जिन्होंने हमेशा से ही पब्लिक सेक्टर के खिलाफ अपनी राय दी हैं।
वहीं बिबेक देबरॉय नीति आयोग के सदस्य भी रहे हैं। इससे पहले बिबेक देबरॉय ने कांग्रेस के समय में राजीव गांधी फाउंडेशन का प्रमुख रहते हुए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बेहतरीन सोशल इंडेक्स को बनाए रखने वाला मुख्यमंत्री बताया था।
जब सरकार की तरफ से आगे आए देबरॉय
दूसरी तरफ यह भी जानना जरुरी है कि जरुरी नीतिगत फैसलों पर सरकार को मुकेश अंबानी का ध्यान रखते हुए उस हिसाब से सुझाव देने के लिए बैठाए गए देबरॉय की खुद योग्यता क्या है। सरकार ने जब नोटबंदी लागू की थी तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन ने इसका विरोध किया था। उस दौरान सरकार की तरफ से जवाब देने देबरॉय आगे आए थे। जिस पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट करते हुए, कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी की ओर से देबरॉय को लिखी एक चिट्ठी पेश की थी जिसमें कहा गया था कि वे पीएचडी में फेल हो गए हैं।
यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता कि सरकार ही यह कह दे कि, अगर बैंक को किसी तरह का घाटा होता है तो बैंक खाताधारकों के खाते में जमा पैसे नहीं लौटाएगी। मतलब अरुण जेटली और मोदी सरकार में मौजूद सभी लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि पूंजीपति इस तरह के सौदे करते हैं जिसमें सरकारी बैंकों को लूट लिया जाता है। जिससे आम जनता की बैंकों में जमा गाढ़ी कमाई को ही हड़पने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को चलाया जाता है।
सावधान, अब बैंको में जमापूंजी पर भी है सरकार की नजर
साल 2004 या 2005 के दौरान का समय होगा जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आरएसएस के एक सदस्य ने जानकारी दी थी कि “अंबानी इतना बड़ा है कि नरेन्द्र मोदी उसे मैनेज नहीं कर पाते हैं। इसलिए मोदी अंबानी के बरक्स एक अद्योगपति खड़ा करने की कोशिश कर रहा है जिसका नाम गौतम अडानी है।”
गुजरात मुख्यमंत्री के दौरान ही यह थी मोदी की कोशिश
“चूंकि अडानी इतना कॉमन नाम नहीं बना था और मोदी का कद भी बीजेपी के टॉप दस लीडरान में शामिल नहीं हुआ था, इसलिए अडानी का नाम मेरे जेहन से पूरी तरह निकल गया। कई दिनों के बाद जब उस स्वयंसेवक मित्र की बात आई तो मैंने बार-बार गूगल करने की कोशिश की कि आखिर उस आदमी का नाम और कारोबार क्या है जिसके बारे में वह बता रहे थे।”
“नाम याद नहीं रह गया था और अडानी की हैसियत आज वाली नहीं हुई थी, इसलिए उसका नाम खोज नहीं पाया। बहुत दिनों के बाद जब गुजरात में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ नामक कार्यक्रम होने लगा तब पता चला कि अरे वह संघी सज्जन तो इस गौतम अडानी की बात कर रहे थे।”
मोदी और मुकेश अंबानी के रिश्ते
यह बात भी सच ही है कि प्रधानमंत्री बनने के पहले से मोदी ने अंबानी के साथ रिश्ते थोड़े बना लिए थे।
लेकिन अंबानी इतना बड़ी ताकत बन गया है कि किसी व्यक्ति को तो छोड़िए अब किसी भी राजनीतिक पार्टी के भी हाथ में नहीं है कि उसे काबू में किया जा सके। यही वजह है कि गौतम अडानी आज भले ही मोदी का खास हो लेकिन अंबानी अपनी जरुरत के हिसाब से सरकार के फैसले पलटने में सक्षम है।
यही वजह है कि आर्म्स डील का लाइसेंस मिलने के साथ ही इतना बड़ा सौदा सरकार के साथ उसने कर लिया।
अब मुकेश अंबानी का दामाद देश को हजारों करोड़ का चूना लगा के सरकार की नाक के नीचे से निकल गया है और सरकार कह रही है कि कुछ खास नहीं हुआ जबकि अखबार पीएनबी घोटाले से जुड़ी खबर के ठीक बगल में अंबानी को लाभ पहुंचाने वाली सिफारिश छाप रहा है।
11,450 करोड़ रुपये घोटाले का समीकरण
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बाद पंजाब नेशनल बैंक भारत के पब्लिक सेक्टर में दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। यहां जितने रकम का घोटाला बताया जा रहा है वह 13,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। पीएनबी की साल 2016-17 के वित्त वर्ष में 1320 करोड़ रुपए की कमाई थी, और यह घोटाला कुल आमदनी का दस गुना ज्यादा है। घोटाले की रफ्तार इतनी तेज थी कि देश के सबसे बड़े उद्योगपति का रिश्तेदार होने के बावजूद आयकर विभाग को आरोपी नीरव मोदी के यहां जनवरी 2017 में छापेमारी करनी पड़ी थी।
लेकिन इस मामले को उस समय मीडिया ने पूरी तरह दबा दिया था। यह मामला अब सिर्फ पीएनबी तक ही सीमित नही रह गया है। जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार पीएनबी ने 30 बैंकों को पत्र लिखकर सब पर आरोप लगया है कि घोटाला उन बैंकों में भी हुआ था।
इंदिरा गांधी है बैकिंग घोटाले की जड़?
जहां अब इस घोटले में बड़े-बड़े लोग शामिल हो गए हैं तो क्या इसलिए देश वित्त मंत्री अरुण जेटली के बैंकिंग विभाग में संयुक्त सचिव लोक रंजन कह रहे हैं, “यह कोई बड़ा मामला नहीं है और ऐसी स्थिति भी नहीं बनी है जिससे कहा जा सकता है कि हालात काबू में नहीं हैं।” तो क्या अब हमें इस बैकिंग घोटाले का जिम्मेदार इंदिरा गांधी को मानना होगा क्योंकि उन्होंने ही बैंकों का राष्ट्रीयकर कराया था।