हम आपको बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक पेमेंट सिस्टम्स के लिए स्वतंत्र रेगुलेटर बनाने के खिलाफ है। हम आपको यह भी बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित पेमेंट्स रेगुलेटरी बोर्ड (PRB) पर असहमति जताते हुए आरबीआई ने अपने नोट में कहा है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर को निर्णायक वोट के साथ इसका चेयरपर्सन होना चाहिए।
अंतर-मंत्रालयी पैनल द्वारा प्रस्तावित PRB के संगठन को लेकर भी आरबीआई ने असहमति दर्ज कराई है। पैनल ने कहा है कि ‘सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति’ चेयरपर्सन होना चाहिए। आरबीआई ने यह भी कहा है कि पैनल का स्टैंड, वित्त अधिनियम, 2017 में प्रस्तावित स्टैंड से अलग है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि PRB में ‘आरबीआई गवर्नर चेयरपर्सन की भूमिका में शामिल होंगे।”
पेमेंट्स & सेटलमेंट्स सिस्टम्स एक्ट, 2007 में संशोधनों को अंतिम रूप देने के लिए वित्त मामलों के सचिव एससी गर्ग की अध्यक्षता में बने सरकारी पैनल ने अगस्त में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें सिफारिश की गई थी कि PRB को एक स्वतंत्र नियामक होना चाहिए, आरबीआई की परिधि से बाहर। यह ठीक उस प्रस्ताव के उलट है जो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त अधिनियम, 2017 में किया था।
आरबीआई कमेटी ने कहा, ”पूर्णकालिक चेयरपर्सन और चार पूर्णकालिक सदस्यों के प्रावधान वाले एक प्रस्तावित संविधान की सिफारिश की गई है। वित्त अधिनियम में दी गई संरचना में तीन पद आरबीआई के थे और तीन केंद सरकार के। सभी सदस्य नामित या फिर स्वतंत्र होने थे। उस स्वरूप में, PRB के लिए कोई पूर्णकालिक सदस्य नहीं था। इस कमेटी द्वारा प्रस्तावित संरचना में इसी रिक्त स्थान को भरने का इंतजाम किया गया है।”
आरबीआई ने शुक्रवार को कहा कि ‘पेमेंट सिस्टम्स असल में करंसी के लिए तकनीक आधारित विकल्प’ हैं और ऐसे सिस्टम्स को आरबीआई की परिधि में रखना ही सबसे अच्छा है। देश में पेमेंट्स बैंक, प्रीपेड पेमेंट वॉलेट और ऑनलाइन पेमेंट्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार और आरबीआई ने इस क्षेत्र के पुराने नियमों और नियामकों की समीक्षा की।