सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर और मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर को लेकर अपना फैसला सुनाया है| हम आपको बता दें कि पुराने ज़माने में लोग हमारे देश की मिसाल दिया करते थे कि यह सोने की चिड़िया है| लेकिन अब कोई बाहर से आने वाला इस बात को यकीन नहीं करता है कि हमारा देश अब सोने की चिड़िया नहीं रहा| हमारे देश में पहले सारे धर्म के लोग मिल जुलकर रहते थे लेकिन जबसे मोदी सरकार आई है तबसे यह लोगों को धर्म के नाम पर बांट रही है|
जैसा कि आप सब जानते हैं कि यहाँ कुछ 2 दशकों से ऐसा माहौल धीरे धीरे एक सुनियोजित तरीके से सियासी लोगों द्वारा बनाया गया है कि यहाँ का आपसी भाईचारा ख़त्म हो गया और इंसान इंसान का ही दुश्मन छोटी छोटी बातों पर बन रहा है|
इस देश में छोटी छोटी बातों को मजहबी रंग दे दिया जाता है
यहाँ पर माहौल इतना ख़राब कर दिया गया है कि यहाँ हर चीज में धार्मिक भावना जोड़ दी जाती है | अभी मंदिर और मस्जिद पर लगे हुए लाउडस्पीकर को लेकर बहुत ज्यादा ही बहस होती हुई देखी गयी थी |
इसमें कुछ लोगों ने आपत्ति दिखाते हुए शिकायत की तो वहीँ कुछ लोगों ने इसको खूब सियासी रंग देने की कोशिश की और इसको लेकर जमकर सियासत की गयी | वहीं इस सबके बीच इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस पर एतराज जताया है |
क्या कहा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सवाल उठाते हुए कहा है कि इन स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने की परमीशन किस अफसर या विभाग ने दी? अगर इस मामले में किसी भी प्रकार की कोई परमीशन नहीं ली गयी तो इन लोगों पर क्या कार्यवाही हुई? वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख गृह सचिव और यूपी के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन से इस सम्बन्ध में व्यक्तिगत तौर पर जवाब माँगा है |
एक याचिका पर सुनाया गया ये फैसला
इस फैसले को सुनने वाले जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच है और इस फैसले को तब सुनाया गया जब इस मामले में एक वकील ने याचिका दाखिल की | दरअसल इस मामले में वकील ने अपनी याचिका में सन 2000 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गये नोइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल्स के प्रावधानों के उल्लंघन का जिक्र किया था |
क्या है ये 2000 में आया हुआ प्रावधान
सन 2000 में केंद्र सरकार की जानिब से एक प्रावधान लाया गया था जिसके तहत बिना जिम्मेदार अधिकारी की आज्ञा के लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस माइक का प्रयोग नहीं किया जा सकता था |
इसके तहत ये भी नियम है कि बंद ऑडिटोरियम , कांफ्रेंस हॉल या कम्युनिटी हॉल आदि बंद जगहों को छोडकर रात 10 से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं किया जा सकता है | सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब 2000 में ऐसा नियम आगया था तो उसका कड़ाई से पालन क्यों नहीं किया गया |