अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में अब एक और नया मोड़ आ गया है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई है।
जिसमें हिंदू महासभा और कमलेश कुमार तिवारी ने लैंड एक्वीजिशन एक्ट की वैधता पर सवाल उठाया गया है। याचिका में कहा गया है कि राज्य की राज्य सूची के विषयों की आड़ में राज्य की भूमि केंद्र अधिग्रहित नहीं कर सकता है।
याचिका में कहा गया है कि जिस एक्ट के तहत 1993 में तब की नरसिंहराव सरकार के 67.7 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की, वह एक्ट बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि भूमि और कानून व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं।
केंद्र को कानून बनाकर राज्य की भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार नहीं है। जब अधिग्रहण ही अवैध है तो जमीन वापस देने में क्या परेशानी है?
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की याचिका
बता दें कि लगभग एक सप्ताह पहले 29 जनवरी को केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर 67 एकड़ जमीन वापसी की मांग की है। केंद्र सरकार ने कोर्ट में याचिका लगाकर मांग की है कि लगभग 0.3 एकड़ भूमि जो कि विवादित है उसे छोड़कर शेष 67 एकड़ भूमि जो अधिग्रहित की गई थी, उसे मालिकों को वापस किया जा सकता है।
बता दें कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले पर 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तिसरा निर्मोही अखाड़े को देने का आदेश दिया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।